देहली के कण-कण में जाने दबे पड़े कितने इतिहास ,
लाल किले की दीवारों ने देखे कितने हास विलास !
कभी पांडवों ने इसके स्वर्गांचल में मणिरत्न जड़े ,
कभी स्वत्व पर बलि होने को इस पर ही चौहान लड़े !
देखा है इसकी मिट्टी ने मुगलों का उन्मत्त विलास ,
देखे हैं इसकी धरती ने जाने कितने मृदु मधुमास !
ये यमुना की लोल लहरियाँ देख चुकीं कितने उत्थान ,
और पतन के गहन गर्त में डूबे हुए गलित अभिमान !
इसके शांत अंक में सोये जाने कितने वीर प्रवण ,
कितनी सतियों ने साजन संग किया मृत्यु का यहाँ वरण !
जब इस लाल किले के ऊपर फहराया परदेशी ध्वज ,
तब झाँसी में बिगुल बजा, चल पड़े वीर सब आलस तज !
हुआ शुरू जबसे स्वतन्त्रता देवी के मठ का निर्माण ,
खेल खेलने लगे मृत्यु का वीर दाँव पर रख कर प्राण !
पहले बनी नींव का पत्थर वह झाँसी की महारानी ,
जिसने राह दिखाई हमको आज़ादी की सुखसानी !
चले बाँध कर कफ़न शीष पर देशप्रेम के मतवाले ,
हँसते-हँसते झूल गये फाँसी पर कितने मतवाले !
आठ युगों की कठिन तपस्या नए देश में रंग लाई ,
'जय स्वदेश' 'जय हिंद' गा उठी मृदु स्वर भर जब शहनाई !
वह 'पन्द्रह अगस्त' सैंतालीस का पावन त्यौहार हुआ ,
जब अपने भारत की सत्ता पर हमको अधिकार हुआ !
बिखर गये सदियों के बंधन हुआ सफल वीरों का त्याग ,
हुआ देश आज़ाद, गुलामी चली गयी भारत से भाग !
इस गौरवमय पुण्य दिवस का क्यों न करें सम्मान सखे ,
आज इसी 'पन्द्रह अगस्त' पर क्यों न करें अभिमान सखे !
बिछुड़ी हुई कीर्ति रानी का जब भारत से मिलन हुआ ,
आज वही 'पन्द्रह अगस्त' है जब संकट का शमन हुआ !
इस पावन अवसर पर साथी लिखा गया इतिहास नया ,
नव संवत्सर काल शिला पर चरण रेख शुभ डाल गया !
हुआ दीप्त अभिषेक तिलक से जब भारत का भाल प्रशस्त ,
'जय भारत' के साथ-साथ गूँजा 'जय जय पन्द्रह अगस्त' !
किरण