नाथ तुम्हारी क्षुद्र सेविका लाई यह रत्नों का हार ,
तुम पर वही चढ़ाती हूँ मैं करना मेरे प्रिय स्वीकार !
मेरा मुझ पर नाथ रहा क्या जो कुछ है वह तेरा है ,
मुझे निराशा अरु आशा की लहरों ने प्रभु घेरा है !
तुम लक्ष्मी माँ के प्रिय पति हो रत्न भेंट हों कैसे नाथ ,
रत्नों की जब खान स्वयं माँ होवें प्रियतम तेरे साथ !
बस हैं यह आँसू ही भगवन् जिनका है यह हार सजा ,
करती भेंट करो स्वीकृत प्रभु यद्यपि तुम्हें यह रहा लजा !
किरण
"बस है यह आँसू ही भगवान जिनका है यह हार सजा ,
जवाब देंहटाएंकरती भेट करो स्वीकृत प्रभु यद्यपि तुम्ही रहा लजाय |"
बहुत भाव पूर्ण और सार्थक रचना |
आशा
बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंसादर
आदरणीय माँ की रचनाओं को पढ़ना हमारे लिए एक विशेष उपलब्धि है , श्रेष्ठता को आकलन की ज़रूरत ही क्या , और मैं ऐसी ध्रिष्ट्ता करूँ क्यूँ !
जवाब देंहटाएंWah! Kya gazab kee rachana hai!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंbhakti ras me sarabore karti ek utkrist rachna..sadar badhayee ke sath
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना ....माँ की सुन्दर कृति
जवाब देंहटाएंकल 04/06/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!