रविवार, 22 जुलाई 2012

खेतों की महारानी





उमड़-घुमड़ कर आये बदरवा, रिमझिम बरसे पानी रे ,
घूँघट में खिल उठी सलोनी खेतों की महारानी रे !

रुन-झुन रुन-झुन बिछिया बाजे, झन-झन झाँझर बोले रे ,
कुहू-कुहू कोयलिया कुहुके, रनिया का मन डोले रे !

पँचरंग चूनर उड़े हवा में, लहँगे का रंग धानी रे ,
घूँघट में खिल उठी सलोनी खेतों की महारानी रे !

कारे धौरे बैल सुहाने, हल बक्खर की जोत रे ,
रजवा के संग जाये सजनिया ले अनाज की मोट रे !

वन में बोले मोर पपीहा, फुल बगिया हरषानी रे ,
घूँघट में खिल उठी सलोनी खेतों की महारानी रे !

हरी ओढ़नी धरती माँ की, लहर-लहर लहराये रे ,
चंदन बिरवा डाल हिंडोला बहू मल्हारें गाये रे!

उड़  कागा जो बीरन आवें, फले तुम्हारी बानी रे ,
घूँघट में खिल उठे सलोनी खेतों की महारानी रे !

हाथन मेंहदी, पैर महावर, माँग सिन्दूर सुहाये रे ,
तीखे नैना भरे लाज से, काजर को शरमाये रे !

छनक-छनक छन पहुँची बाजे, झाँझर झमक सुहानी रे ,
घूँघट में खिल उठी सलोनी खेतों की महारानी रे !

" गंगा मैया दीप सँजोऊँ, हार फूल ले आऊँ रे ,
खेतन  मेरे सोना बरसे  तो मैं तुम्हें नहाऊँ रे !"

बैठी शगुन मनावहिं गोरी, वर दे अवढर दानी रे ,
घूँघट  में खिल उठी सलोनी खेतों की महारानी रे !



किरण

12 टिप्‍पणियां:

  1. छनक-छनक छन पहुँची बाजे, झाँझर झमक सुहानी रे ,
    घूँघट में खिल उठी सलोनी खेतों की महारानी रे !

    " गंगा मैया दीप सँजोऊँ, हार फूल ले आऊँ रे ,
    खेतन मेरे सोना बरसे तो मैं तुम्हें नहाऊँ रे !"

    बैठी शगुन मनावहिं गोरी, वर दे अवढर दानी रे ,
    घूँघट में खिल उठी सलोनी खेतों की महारानी रे !... खेतों की महारानी दुल्हन सी सज संवर गई है ... अदभुत चित्रण

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  2. उड़ कागा जो बीरन आवें, फले तुम्हारी बानी रे ,
    घूँघट में खिल उठे सलोनी खेतों की महारानी रे !

    बड़ी ही मनभावन प्यारी सी कविता

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  3. महारानी अपने जनों का ख्याल भी रहे..

    बहुत ही अद्भुत कविता..

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  4. बहुत प्यारी बोली.....और सुन्दर भाव भी...
    खूबसूरत कविता साधना जी.
    सादर
    अनु

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  5. मन को अविभूत करती रचना |बहुत सुन्दर शब्द चयन |
    आशा

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  6. वर्षा महारानी पर बहुत सुंदर गीत ... आभार

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  7. हाथन मेंहदी, पैर महावर, माँग सिन्दूर सुहाये रे ,
    तीखे नैना भरे लाज से, काजर को शरमाये रे !

    छनक-छनक छन पहुँची बाजे, झाँझर झमक सुहानी रे ,
    घूँघट में खिल उठी सलोनी खेतों की महारानी रे !

    " गंगा मैया दीप सँजोऊँ, हार फूल ले आऊँ रे ,
    खेतन मेरे सोना बरसे तो मैं तुम्हें नहाऊँ रे !"

    अद्भुत शानदार मनभावन प्रस्तुति।

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  8. वर्षा के मौसम का सुन्दर चित्रण .
    मगर यहाँ कब आयेंगी !

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  9. बाहर भी बारुश और कम्प्यूटर पर भी मौसम सुहाना तो लगना ही है। बहुत सुन्दर।

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  10. भाव भीनी ... रुनझुन करती रचना .. पढते हुवे बहार आ रही हो जैसे ..

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  11. is rachna ko padhkar to anand aa gaya...shabdon se kitna manohari drishya taiyaar kar diya apne..kabile taareef...sadar badhayee aaur sadar amantran ke sath

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