मंथर गति से मलय पवन आ
सौरभ से नहला जाता ,
कुहू-कुहू करके कोकिल जब
मंगल गान सुना जाता !
हरित स्वर्ण श्रृंगार साज जब
अवनि उमंगित होती थी ,
स्वागत को ऋतुराज तुम्हारे
सुख स्वप्नों में खोती थी !
भर फूलों में रंग पराग के
कुमकुम से भर कर झोली ,
आते थे ऋतुराज खेलने
तुम प्रतिवर्ष यहाँ होली !
किन्तु आज आहों की ज्वाला
हृदय नीड़ को जला रही ,
निज पुत्रों के बलिदानों से
अब वसुधा तिलमिला रही !
अब न कोकिला के मृदु स्वर में
मंगलमय संगीत भरा ,
दुखिया दीन मलीन वेश में
प्रस्तुत है ऋतुराज धरा !
है दारिद्र्य देव का शासन
नंगे भूखों की टोली ,
दुखी जनों के हृदय रक्त से
आ वसन्त खेलो होली !
किरण
सौरभ से नहला जाता ,
कुहू-कुहू करके कोकिल जब
मंगल गान सुना जाता !
हरित स्वर्ण श्रृंगार साज जब
अवनि उमंगित होती थी ,
स्वागत को ऋतुराज तुम्हारे
सुख स्वप्नों में खोती थी !
भर फूलों में रंग पराग के
कुमकुम से भर कर झोली ,
आते थे ऋतुराज खेलने
तुम प्रतिवर्ष यहाँ होली !
किन्तु आज आहों की ज्वाला
हृदय नीड़ को जला रही ,
निज पुत्रों के बलिदानों से
अब वसुधा तिलमिला रही !
अब न कोकिला के मृदु स्वर में
मंगलमय संगीत भरा ,
दुखिया दीन मलीन वेश में
प्रस्तुत है ऋतुराज धरा !
है दारिद्र्य देव का शासन
नंगे भूखों की टोली ,
दुखी जनों के हृदय रक्त से
आ वसन्त खेलो होली !
किरण
kyaa bat hai jnab achchaa svaagt hai bhtrin jzbaat or alfaazon ke saath .akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंओह!! कविता की प्रथम पंक्तियाँ पढ़ते हुए जो मुस्कान फैली थी चेहरे पर अंतिम पंक्तिओं तक पहुँचते-पहुँचते तिरोहित हो गयी...
जवाब देंहटाएंसच ही तो है...आज कैसा वसंत और कैसी होली...:(
बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंहै दारिद्र्य देव का शासन
जवाब देंहटाएंनंगे भूखों की टोली ,
दुखी जनों के हृदय रक्त से
आ वसन्त खेलो होली !
कितनी गहनता है इस रचना में ...माँ की कलाम को नमन
Bahut,bahut sundar!
जवाब देंहटाएंअब न कोकिला के मृदु स्वर में
जवाब देंहटाएंमंगलमय संगीत भरा ,
दुखिया दीन मलीन वेश में
प्रस्तुत है ऋतुराज धरा !
सच है अब कुछ भी नहीं रहा ना वह उत्साह रहा है ना ही खुश है वसुंधरा... गहन भाव
किन्तु आज आहों की ज्वाला
जवाब देंहटाएंहृदय नीड़ को जला रही ,
निज पुत्रों के बलिदानों से
अब वसुधा तिलमिला रही !
अब न कोकिला के मृदु स्वर में
मंगलमय संगीत भरा ,
दुखिया दीन मलीन वेश में
प्रस्तुत है ऋतुराज धरा !...behtareen
आ वसन्त खेलो होली !नमन
जवाब देंहटाएंहै दारिद्र्य देव का शासन
जवाब देंहटाएंनंगे भूखों की टोली ,
दुखी जनों के हृदय रक्त से
आ वसन्त खेलो होली !
-कितना सत्य....ओह!
oh ...gahan bhav ....
जवाब देंहटाएंmarm ko chhooti rachna ...!!
समाज की मार्मिक दशा को प्रतिबिम्बित करती कविता..
जवाब देंहटाएंकवि दृष्टी सचमुच कितनी चीजें देखती हैं...
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत...
सादर.
है दारिद्र्य देव का शासन
जवाब देंहटाएंनंगे भूखों की टोली ,
दुखी जनों के हृदय रक्त से
आ वसन्त खेलो होली !
सुन्दर प्रस्तुति .
पंक्तियों का कोई जवाब नहीं , अतिउत्तम काव्य न नमूना बधाई
जवाब देंहटाएंbahut hi anupam rachanaa .bahut badhaai aapko.
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स मीट वीकली (३२) में शामिल किया गया है /आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आप सबका आशीर्वाद और स्नेह इस मंच को हमेशा मिलता रहे यही कामना है /आभार /इस मीट का लिंक है
http://hbfint.blogspot.in/2012/02/32-gayatri-mantra.html
समाज को आइना दिखाता आपका प्रवाहमय गीत ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव लिए रचना |
जवाब देंहटाएंआशा