शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

आ वसन्त ! खेलो होली !


मंथर गति से मलय पवन आ
सौरभ से नहला जाता ,
कुहू-कुहू करके कोकिल जब
मंगल गान सुना जाता !

हरित स्वर्ण श्रृंगार साज जब
अवनि उमंगित होती थी ,
स्वागत को ऋतुराज तुम्हारे
सुख स्वप्नों में खोती थी !

भर फूलों में रंग पराग के
कुमकुम से भर कर झोली ,
आते थे ऋतुराज खेलने
तुम प्रतिवर्ष यहाँ होली !

किन्तु आज आहों की ज्वाला
हृदय नीड़ को जला रही ,
निज पुत्रों के बलिदानों से
अब वसुधा तिलमिला रही !

अब न कोकिला के मृदु स्वर में
मंगलमय संगीत भरा ,
दुखिया दीन मलीन वेश में
प्रस्तुत है ऋतुराज धरा !

है दारिद्र्य देव का शासन
नंगे भूखों की टोली ,
दुखी जनों के हृदय रक्त से
आ वसन्त खेलो होली !


किरण




सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

आई बहार आया वसन्त


फूली सरसों झूमी बालें, धरणी को फिर श्रृंगार मिला ,
छाई आमों पर तरुणाई, बौरों को मधु का प्यार मिला !

नव पादप झूम उठे साथी, कोकिल फिर तान लगी भरने ,
नव खिली कली को देख भ्रमर, फिर से मनुहार लगे करने !

कोमल किसलय के आँचल से, छाई वृक्षों पर हरियाई ,
चंचला प्रकृति के प्रांगण में, फिर आज बज उठी शहनाई !

फिर रक्त कुसुम खिलखिला उठे, टेसू ने वन में भरा रंग ,
कुसुमायुध लेकर आ पहुँचा, निज सखा सहित ऋतुपति अनंग !

सौरभ वितरित कर कुसुमों ने, कर दिये सुगन्धित दिग्दिगंत ,
सब जग हर्षित हो नाच उठा, आई बहार आया वसन्त !


किरण

सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

वसंतागमन











आज नयनों में जीवन है !

दर्शन कर उस प्राण सखा का
पुलकित तन मन है !

आज नयनों में जीवन है !

आज कुसुमित उर की डाली ,
आज प्रमुदित मन का माली ,
आया नव वसन्त आज
मुकुलित यह उपवन है !

आज नयनों में जीवन है !

भाव अंकुर हैं फूट चले ,
मधुप सौरभ हैं लूट चले ,
आज लुटाता मृदु पराग
मलयानिल क्षण-क्षण है !

आज नयनों में जीवन है !

रंगीली आशा की कलियाँ ,
कर रहीं खिल-खिल रंगरलियाँ ,
आया उनके देश पाहुना
वह तो जीवन धन है !

आज नयनों में जीवन है !


किरण