शुक्रवार, 30 सितंबर 2011

शतश: प्रणाम


ओ आज़ादी के दीवानों , ओ स्वातंत्र्य युद्ध के वीरों ,
ओ रणचण्डी के खप्पर को भरने वाले रणवीरों !

देकर तन मन धन की आहुति जीवन यज्ञ रचाने वालों ,
अपने दृढ़ निश्चय के दीपक जला पंथ दिखलाने वालों !

बने नींव के पत्थर पल क्षण अपनी भेंट चढ़ाने वालों ,
विजय दुर्ग की प्राचीरों को दृढ़ करने वाले मतवालों !

ओ भारत के कोहेनूर गाँधी बाबा तुमको प्रणाम ,
ओ अमर शहीदों भक्तिपूर्ण तुमको प्रणाम शतश: प्रणाम !


किरण

शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

दुविधा


करूँ प्रसन्न तुम्हें मैं कैसे
क्या दूँ मैं प्रियतम उपहार ,
दीन हीन, तन क्षीण भिखारिन
मैं, प्रभु हो तुम रत्नागार !

पुष्प करूँ यदि भेंट दयामय
नंदन वन है यहाँ कहाँ ,
दीपक भेंट करूँ यदि तुमको
सूर्य ज्योत्सना नहीं यहाँ !

वस्त्र नहीं दे सकती प्रभुवर
मिलें कहाँ से वे पट पीत ,
माखन मिश्री भोजन हित मैं
पाऊँ कैसे मेरे मीत !

लक्ष्मी माता अर्द्धांगिनी हैं
पैसा भेंट करूँ कैसे ,
मेरे पास नहीं कुछ है प्रभु
दीन सुदामा हूँ जैसे !

सभी वस्तु की खान तुम्हीं हो
क्या दूँ भेंट प्रभु तुमको ,
एक वस्तु तव पास नहीं है
अति आनंद यही मुझको !

हृदय कमल तो चुरा लिया है
राधा रानी ने तेरा ,
रिक्त पड़ा अब तक वह स्थल
वहाँ बिठा लो मन मेरा !

कभी न ये आहें आवाजें
कान तुम्हारे पड़ती हैं ,
अति आरत हो तभी धरिणी माँ
दुःख से थर-थर कँपती है !

हृदय रहेगा पास तुम्हारे
तो सबकी सुन लोगे खूब ,
अभी असर नहीं होता होगा
जाते होगे सबसे ऊब !

उर की चाह तुम्हें है भगवन्
धन की चाह लगी मुझको ,
भक्ति सम्पदा मुझको दे दो
यह उर भेंट प्रभो तुमको !


किरण


शनिवार, 17 सितंबर 2011

उत्कण्ठा


आज प्रिय घर आयेंगे !
प्राण प्रमुदित हैं सखी प्रियतम सुदर्शन पायेंगे !
सखि आज प्रिय घर आयेंगे !

नयन निर्झरिणी उमड़ कर यह प्रकट करती रही कि ,
आज अपने प्राणधन पर हम ही अर्ध्य चढ़ायेंगे !
सखि आज प्रिय घर आयेंगे !

हृदय उपवन में सखी मन मालि चुन कर पुष्प मृदु ,
सोचता यह हार गुँथ कर हम उन्हें पहनायेंगे !
सखि आज प्रिय घर आयेंगे !

कह उठे कर आज सेवा करके हम होंगे सफल ,
पैर बोले आज स्वागत को प्रथम हम जायेंगे !
सखि आज प्रिय घर आयेंगे !

कहा जिह्वा ने कि स्तुति करके होऊँ धन्य मैं ,
कर्ण बोले शब्द उनके सुनके हम सुख पायेंगे !
सखि आज प्रिय घर आयेंगे !

हो उठी उन्मत्त मैं सखि आगमन लख नाथ का ,
आज मम मानस बिहारी हंस उड़ कर आयेंगे !
सखि आज प्रिय घर आयेंगे !


किरण

चित्र गूगल से साभार


सोमवार, 12 सितंबर 2011

आये बिन बनेगी ना

हिन्दी भाषा के उत्थान के लिये मेरी माँ उस युग में भी कितनी व्यग्र थीं ज़रा उसकी बानगी देखिये उनकी इस रचना में !


बिन सूत्रधार हुए आपके हे यदुनाथ
हिन्दू जाति उच्चता को प्राप्त अब करेगी ना ,

सो रही जो वर्षों से अज्ञानता की नींद में
बिन चौकीदार के जगाये वह जगेगी ना ,

भूल चुकी संस्कृत, बिसार चुकी हिन्दी जो
बिन सिखलाये 'कैट' 'रैट' ज़िद से हटेगी ना ,

इसलिये पुकार कर ये कहती 'ज्ञान' बार-बार
नाथ अब भारत में आये बिन बनेगी ना !


किरण

मंगलवार, 6 सितंबर 2011

सखी युग ने करवट बदली

सखी युग ने करवट बदली !

आज नया यह पुण्य प्रभात ,
आज प्रफुल्लित है उर गात ,
घटा शोक, संताप, विषाद ,
छाया सुखद मधुर आल्हाद ,
भाग्य सूर्य भारत का चमका फटी दुखों की बदली !
सखी युग ने करवट बदली !

आज हमारा सच्चा देश ,
आज हमारा सच्चा वेश ,
दूर हुआ सब कोढ़ कलंक ,
मिटा व्यर्थ का भय आतंक ,
भारत के निर्मल सागर से हटी सरित वह गँदली !
सखी युग ने करवट बदली !

आओ मंगल साज सजें सखि ,
घर-घर मंगल वाद्य बजें सखि ,
दूर करें ईसा सम्वत्सर
नव सम्वत्सर आज लिखें सखि ,
पूजें विजय देवी हर्षित हो चढ़ा आम्रफल कदली !
सखि युग ने करवट बदली !

किरण