बुधवार, 25 जनवरी 2012

नव वसन्त आया


सखी री नव वसन्त आया !

आदि पुरुष ने धरा वधू पर पिचकारी मारी ,
नीले पीले हरे रंग से रंग दी रे सारी ,
अरुण उषा से ले गुलाल मुखड़े पर बिखराया ,
वह सकुचाई संध्या के मिस अंग-अंग भरमाया !

सखी री नव वसन्त आया !

रति की चरणाकृति पाटल किंशुक मिस मुस्काई ,
वन-वन उपवन नगर डगर में सुषमा इठलाई ,
रंग बिरंगी कुसुम प्यालियों को ला फैलाया ,
चतुर चितेरा प्रकृति पटल पर चित्र सजा लाया !

सखी री नव वसन्त आया !

सरस्वती ने निज वीणा को फिर से झनकारा ,
कोकिल की मृदु स्वर लहरी से गूँजा जग सारा ,
राग बहार यहाँ पर आकर ऐसा बौराया ,
फीकी पड़ी कीर्ति तब जब कोकिल ने गाया !

सखी री नव वसन्त आया !


किरण


19 टिप्‍पणियां:

  1. बसंत और आपके भावों के रंग का संयोजन .... सबकुछ बासंती

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  2. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

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  3. बड़ी खिली-खिली सी कविता है...मन में उल्लास भर गयी.

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  4. गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएँ।
    ----------------------------
    कल 27/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  5. बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति|
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें|

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  6. बंसत, आ, पूरी तैयारी है,
    स्वागत शब्द सँवारी है,

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  7. सुन्दर रचना...
    जीवंत चित्रण ..

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  8. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  9. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है...
    मन प्रफुल्लित हो गया..

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  10. वसंत पर बहुत भावपूर्ण रचना |
    आशा

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  11. माँ की हर रचना मन को सुकून देती है ..बहुत सुन्दर और भाव लिए बेहतरीन रचना

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  12. अति सुंदर साधना जी। माँ के सृजन को नमन !

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  13. बहुत सुन्दर भाव...बेहतरीन रचना...

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