बुधवार, 28 अप्रैल 2010

प्रणय के क्षण

दिये प्रणय के जो क्षण तुमने,
जीवन के आधार बन गए ,
घृणा, उपेक्षा, पीड़ा, दंशन
परित्यक्ता को प्यार बन गये !

सुख सज्जा के स्वप्न ह्रदय ने
मिलन रात्रि में खूब सँवारे ,
हुई विरह की भोर, नयन के
मोती ही गलहार बन गये !

कभी निशा की शीतलता का
मोल न कर पाया था जो मन ,
उसके लिये गगन के तारे
झुलसाते अंगार बन गये !

जिन सौरभयुत सुमनों को चुन
कभी सजाई सेज पिया की ,
दुर्दिन की छाया पड़ते ही
वे ही तीखे खार बन गये !

अरमानों के विहग लुटे से
त्याग रहे प्राणों की ममता ,
खुले द्वार थे जिस मंदिर के
वे अब कारागार बन गये !

कैसे वे दिन रातें भूलूँ ,
कैसे भूलूँ उनकी बातें ,
सुख सरिता के मंद झकोरे
अरे उफनते ज्वार बन गये !

किरण

10 टिप्‍पणियां:

  1. दिये प्रणय के जो क्षण तुमने,
    जीवन के आधार बन गए ,
    घृणा, उपेक्षा, पीड़ा, दंशन
    परित्यक्ता को प्यार बन गये !

    -बहुत सुन्दर!

    जवाब देंहटाएं
  2. जिन सौरभयुत सुमनों को चुन
    कभी सजाई सेज पिया की ,
    दुर्दिन की छाया पड़ते ही
    वे ही तीखे खार बन गये !
    bahut hi sundar abhar...

    जवाब देंहटाएं
  3. आपके इस सुन्दर और संदेशात्मक कविता की जितनी तारीफ की जाय कम है / आपके इस प्रयास के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद / हम आपको अपने इस पोस्ट http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/04/blog-post_16.html पर देश हित में १०० शब्दों में अपने बहुमूल्य विचार और सुझाव रखने के लिए आमंत्रित करते हैं / उम्दा विचारों को हमने सम्मानित करने की व्यवस्था भी कर रखा है / पिछले हफ्ते अजित गुप्ता जी उम्दा विचारों के लिए सम्मानित की गयी हैं /

    जवाब देंहटाएं
  4. कैसे वे दिन रातें भूलूँ ,
    कैसे भूलूँ उनकी बातें ,
    सुख सरिता के मंद झकोरे
    अरे उफनते ज्वार बन गये !
    Oh! Kaisa,kaisa dard chhupa hai is khoobsoorat rachname!

    जवाब देंहटाएं
  5. संदेशात्मक कविता की जितनी तारीफ की जाय कम है

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुन्दर भावपूर्ण कविता।

    जवाब देंहटाएं
  7. एक अति उत्तम सशक्त कविता |मन को छू गई |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  8. साधना जी ,
    माँ के द्वारा इतनी सुन्दर रचित कविता को हमें पढने का अवसर दिया....एक एक शब्द जैसे चुन कर लिया है...जहाँ मिलन का सुख है ,वहाँ विरह वेदना भी...बहुत खूबसूरत रचना है..आभार

    जवाब देंहटाएं