गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

प्रणय का संभार कैसा !

हो तुम्हीं यदि दूर तो यह प्रणय का सम्भार कैसा !

तुम लगा पाये न मेरे दु:ख का अनुमान साथी,
जान कर भी अब बने जो आज यों अनजान साथी,
है निराशा की धधकती आग एक महान साथी,
हो चुके हैं भस्म जिसमें छलकते अरमान साथी,
प्राण शीतल प्रेम में यह विरह का श्रृंगार कैसा !
हो तुम्हीं यदि दूर तो यह प्रणय का संभार कैसा !

जब खिला करते जगत में नित्य सुख के फूल साथी,
स्नेह सरि के जब मिले रहते सदा युग कूल साथी,
जब बढ़ी जाती प्रकृति भी निज नियम को भूल साथी,
तब मुझे क्यों स्नेह के साधन हुए दुःख मूल साथी,
है मुझे अभिशाप ही वरदान फिर अभिसार कैसा !
हो तुम्हीं यदि दूर तो फिर प्रणय का संभार कैसा !

दूर है मेरा किनारा नाव बिन पतवार साथी,
क्या पता मैं डूब जाऊँ या कि पहुँचूँ पार साथी,
फूल सा जीवन मुझे तो अब बना है भार साथी,
आज मुझको भेंट देने पर तुला संसार साथी,
व्यर्थ है अनुनय विनय पाषाण में है प्यार कैसा !
हो तुम्हीं यदि दूर तो यह प्रणय का संभार कैसा !

आज विस्मृति सिंधु में स्मृति हुई म्रियम्राण साथी,
फिर किसी की याद में हैं भटकते से प्राण साथी,
क्या कभी होगा विनाशी विरह से भी त्राण साथी,
या सदा घायल ह्रदय में चुभेंगे ये बाण साथी,
हो निराशा रात्रि में यह आश का श्रृंगार कैसा !
हो तुम्हीं यदि दूर तो यह प्रणय का संभार कैसा !

किरण

12 टिप्‍पणियां:

  1. क्या बात है!! माता जी की रचनाओं का संकलन प्रकाशित करवायें..कितनी बेहतरीन रचनायें हैं.

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  2. सराहना के लिये धन्यवाद समीर जी ! ये रचनायें पुस्तक रूप में संकलित हैं लेकिन ब्लॉग पर इन्हें उन प्रबुद्ध गुणीजनों के लिये उपलब्ध कराना चाहती हूं जिन तक पुस्तक की पहुँच नहीं है ! पुन: आपका बहुत बहुत आभार !

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  3. bahut khoob..Sadhna ji...
    हो निराशा रात्रि में यह आश का श्रृंगार कैसा !
    हो तुम्हीं यदि दूर तो यह प्रणय का संभार कैसा !

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  4. एक और सुंदर रचना.

    I am really thankful to internet as well. If we were not connected, I may not have gotten a chance to find about these gems, sitting here in USA!

    -Rajeev Bharol

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  5. माता जी ने बहुत सुंदर लिखा है... बहुत गहरे भाव है इनमे

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  6. साधना जी,

    आपका प्रयास बहुत सराहनीय है...सच ही माँ कि पुस्तक हमको कहाँ मिल पाती....और ये गीत तो बस मन को लुभा ही गया....हर तरह से एक उत्कृष्ट रचना है....आपका आभार

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  7. आप सभी की ह्र्दय से कृतज्ञ हूँ कि आप अपना अमूल्य समय निकाल कर इन्हें पढ़ रहे हैं और सराह रहे हैं ! मेरी मनोकामना फलीभूत हो रही है ! एक बार पुन: आप सबका धन्यवाद !

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  8. नेट पर मम्मी की रचनाएँ देख कर जो आनंद होता है शायद
    इसकी कभी कल्पना भी नहीं कर पाए थे |इस सफल प्रयास केलिए
    तुम्हारी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है |
    आशा

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  9. बहुत सुंदर लिखा है... बहुत गहरे भाव है इनमे

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  10. आज विस्मृति सिंधु में स्मृति हुई म्रियम्राण साथी,
    फिर किसी की याद में हैं भटकते से प्राण साथी,
    क्या कभी होगा विनाशी विरह से भी त्राण साथी,
    या सदा घायल ह्रदय में चुभेंगे ये बाण साथी,
    हो निराशा रात्रि में यह आश का श्रृंगार कैसा !
    हो तुम्हीं यदि दूर तो यह प्रणय का संभार कैसा
    bahut hi gaharai se likhti hain aap.behad .
    prabhavshali abhvykti
    poonam

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  11. तुम्हारी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है |


    sanjay bhaskar

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