स्नेह का तुम दान दे दो
मैं दिये बुझते जला दूँ !
चुक गया है तेल जीवन का
न जिनमें ज्योति कण भर,
जा रहे हैं रूठ कर जो
विवश बंधन में जकड कर,
जो तनिक तुम मान दे दो
मैं ह्रदय रूठे मना लूँ !
स्नेह का तुम दान दे दो
मैं दिये बुझते जला दूँ १
स्वप्न सूने जा रहे हैं
छा रहा नभ वेदना का,
भर रहा नैराश्य मन में
घुट रहा दम भावना का,
तुम मधुर मुस्कान दे दो
मैं कली सूखी खिला दूँ !
स्नेह का तुम दान दे दो
मैं दिये बुझते जला दूँ !
देख मानव की विवशता
मौन नगपति हो रहा यों,
पतित पावन जाह्नवी का
आज गौरव खो रहा क्यों ?
प्रेरणा तुम प्राण दे दो
मैं विजय के गान गा दूँ !
स्नेह का तुम दान दे दो
मैं दिये बुझते जला दूँ !
किरण
बहुत सुन्दर गीत..आभार पढ़वाने का.
जवाब देंहटाएंस्नेह का तुम दान दे दो ...मैं बुझते दिए जला दूँ ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता ...
आभार ...!
lajawaab geet...dhanyawad...
जवाब देंहटाएंhttp://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
स्नेह का तुम दान दे दो
जवाब देंहटाएंमैं दिये बुझते जला दूँ !
lajawaab geet.............dhanyawad...
मन भावन ह्रदय स्पर्शी रचना मन को छू गई |
जवाब देंहटाएंआशा
"स्नेह का तुम दान दे दो
जवाब देंहटाएंमैं दिये बुझते जला दूँ ! "
बहुत सुंदर.
bahut sundar geet/kavita
जवाब देंहटाएंbahut khub
जवाब देंहटाएंस्नेह का तुम दान दे दो
मैं दिये बुझते जला दूँ !