बुधवार, 21 अप्रैल 2010

मैं दिये बुझते जला दूँ !

स्नेह का तुम दान दे दो
मैं दिये बुझते जला दूँ !

चुक गया है तेल जीवन का
न जिनमें ज्योति कण भर,
जा रहे हैं रूठ कर जो
विवश बंधन में जकड कर,
जो तनिक तुम मान दे दो
मैं ह्रदय रूठे मना लूँ !
स्नेह का तुम दान दे दो
मैं दिये बुझते जला दूँ १

स्वप्न सूने जा रहे हैं
छा रहा नभ वेदना का,
भर रहा नैराश्य मन में
घुट रहा दम भावना का,
तुम मधुर मुस्कान दे दो
मैं कली सूखी खिला दूँ !
स्नेह का तुम दान दे दो
मैं दिये बुझते जला दूँ !

देख मानव की विवशता
मौन नगपति हो रहा यों,
पतित पावन जाह्नवी का
आज गौरव खो रहा क्यों ?
प्रेरणा तुम प्राण दे दो
मैं विजय के गान गा दूँ !
स्नेह का तुम दान दे दो
मैं दिये बुझते जला दूँ !

किरण

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर गीत..आभार पढ़वाने का.

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  2. स्नेह का तुम दान दे दो ...मैं बुझते दिए जला दूँ ...
    बहुत सुन्दर कविता ...
    आभार ...!

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  3. स्नेह का तुम दान दे दो
    मैं दिये बुझते जला दूँ !

    lajawaab geet.............dhanyawad...

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  4. मन भावन ह्रदय स्पर्शी रचना मन को छू गई |
    आशा

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  5. "स्नेह का तुम दान दे दो
    मैं दिये बुझते जला दूँ ! "

    बहुत सुंदर.

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  6. bahut khub

    स्नेह का तुम दान दे दो
    मैं दिये बुझते जला दूँ !

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