मैं तुम्हीं से आज अपने गान लूँगी !
मूक है वंशी तुम्हारी तो हुआ क्या ,
मैं उसीसे आज स्वर, लय, तान लूँगी !
मैं तुम्हीं से आज अपने गान लूँगी !
एक दिन जब प्यार सिर धुन रो रहा था,
स्वार्थ का साम्राज्य अविचल हो रहा था,
पापियों के भार से थी धरिणी कम्पित,
विकल कोलाहल जगत में हो रहा था,
अवनि को जो सुखद आश्वासन दिया था,
मैं उसी का आज तुमसे दान लूँगी !
मैं तुम्हीं से आज अपने गान लूँगी !
छोड़ कर बैकुंठ जब आये यहाँ थे,
स्वर्ग के सब श्रेष्ठ सुख लाये यहाँ थे,
नाच कर, गाकर, मधुर मुरली बजा कर,
प्रेम घन चहुँ ओर बरसाये यहाँ थे,
मैं उसी सुख वृष्टि की अभिनव झड़ी से,
आज नन्हीं बूँद एक महान लूँगी !
मैं तुम्हीं से आज अपने गान लूँगी !
एक दिन जब राधिका का प्रेम लेकर,
ओर उसको निज हृदय की भेंट देकर,
तुम चले अक्रूर संग तज विकल गोकुल,
लौट आने का सुखद वरदान देकर,
तब उन्हें जो स्नेह का सम्बल दिया था,
मैं तुम्हीं से आज वह वरदान लूँगी !
मैं तुम्हीं से आज अपने गान लूँगी !
राधिका का सरल मन बहला सके तुम,
पूज्य बनने विश्व में तब जा सके तुम,
किन्तु यह उस त्याग की ही है निशानी,
मान्यता जो आज इतनी पा सके तुम,
जो तुम्हें निज पाश में बाँधे हुए थे,
मैं तुम्हीं से आज वो अरमान लूँगी !
मैं तुम्हीं से आज अपने गान लूँगी !
आज कैसे मान लूँ बस मूर्ति हो तुम,
जो अधूरा है उसी की पूर्ति हो तुम,
अलस सोये तार वीणा के पड़े जो,
तुम उसी की तान हो, स्फूर्ति हो तुम,
स्नेह की भागीरथी फिर ला सकूँ जो,
मैं तुम्हीं से आज इसका ज्ञान लूँगी !
मैं तुम्हीं से आज अपने गान लूँगी !
देख लो यह अवनि फिर अकुला रही है,
आपदाओं की घटा फिर छा रही है,
बह उठी है आज करुणा की नदी वह,
जो न सागर का किनारा पा रही है,
अश्रुधारा से निमज्जित इन मुखों की,
मैं तुम्हीं से फिर मधुर मुस्कान लूँगी !
मैं तुम्हीं से आज अपने गान लूँगी !
किरण
दिल को छू रही है यह कविता .......... सत्य की बेहद करीब है ..........
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !!
जवाब देंहटाएंआज कैसे मान लूँ बस मूर्ति हो तुम,
जवाब देंहटाएंजो अधूरा है उसी की पूर्ति हो तुम,
अलस सोये तार वीणा के पड़े जो,
तुम उसी की तान हो, स्फूर्ति हो तुम,
स्नेह की भागीरथी फिर ला सकूँ जो,
मैं तुम्हीं से आज इसका ज्ञान लूँगी !
बहुत शानदार रचना। बधाई
एक दिन जब प्यार सिर धुन रो रहा था,
जवाब देंहटाएंस्वार्थ का साम्राज्य अविचल हो रहा था,
पापियों के भार से थी धरिणी कम्पित,
विकल कोलाहल जगत में हो रहा था,
अवनि को जो सुखद आश्वासन दिया था,
मैं उसी का आज तुमसे दान लूँगी !
Jawab nahi aapka...shilp ki tarah gadhe hain alfaaz!
एक सारगर्भित हृदय को छू जातें भाव |अति सुंदर कविता |
जवाब देंहटाएंआशा
क्या कहूँ। अद्भुत ही अद्भुत नजर आया।
जवाब देंहटाएंखाली नहीं लौटा, प्यासा जो तेरे दर आया।
भक्ति भाव से परिपूर्ण रचना बहुत सुन्दर लगी ।
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका आगमन अच्छा लगा । आभार।
भक्ति भाव से परिपूर्ण रचना बहुत सुन्दर लगी ।
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