जो किसी भी मूल्य पर
बीते दिवस लौटा सकी तो,
मैं तुम्हें बतला सकूँगी
जीत क्या है हार क्या है !
था बड़ा जीवन सुनहरा,
मस्त, चिंता का न कुहरा ,
छू सका था जिसे केवल
खेलना, खिलना, मचलना !
जो यदि वह पा सकी तो
मैं तुम्हें बतला सकूँगी
अश्रु का संसार क्या है !
एक था साथी ह्रदय का
मीत मेरे निज पलों का,
खो चुकी हूँ आज उसको
तुच्छ जिससे स्वर्ण भी था !
फिर उसे यदि खोज पाई
तो तुम्हें बतला सकूँगी
नयन का अभिसार क्या है !
वह मधुर मधुमास जिसमें
फूल, सौरभ, फाग जिसमें,
कोकिला के एक स्वर से
गूँज उठते राग जिसमें !
आ गया फिर भूल कर यदि
तो तुम्हीं कहने लगोगे
सृष्टि का श्रृंगार क्या है !
किरण
अति सुन्दर रचना...आभार!
जवाब देंहटाएंbahut hi achhi aur mann ko chhune waali rachna...
जवाब देंहटाएंis baar mere blog par english poem jaroor padhein....
काबिले तारीफ़
जवाब देंहटाएंकाबिले तारीफ़
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुती ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव और भाषा चयन |
जवाब देंहटाएंआशा
तारीफ के लिए शब्द नहीं हैं. क्या बोलूं. बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंजो किसी भी मूल्य पर
जवाब देंहटाएंबीते दिवस लौटा सकी तो,
मैं तुम्हें बतला सकूँगी
जीत क्या है हार क्या है !
श्रंगार रूप रस भाव शब्द हर लिहाज से एक खूबसूरत कविता ..यक़ीनन आपका काव्य पढ्नीय और सराहनीय है ..आपको पहली बार पढ़ा है लेकिन यक़ीनन काबिल-ए-दाद मन प्रसन्न हुआ .................दाद क़ुबूल करें
आप जैसी लेखिका को मेरे भाव पसंद आये और मेरा हौसला बढाया ये मेरे लिए फक्र की बात है