शनिवार, 10 अप्रैल 2010

जीत क्या है हार क्या है

जो किसी भी मूल्य पर
बीते दिवस लौटा सकी तो,
मैं तुम्हें बतला सकूँगी
जीत क्या है हार क्या है !

था बड़ा जीवन सुनहरा,
मस्त, चिंता का न कुहरा ,
छू सका था जिसे केवल
खेलना, खिलना, मचलना !
जो यदि वह पा सकी तो
मैं तुम्हें बतला सकूँगी
अश्रु का संसार क्या है !

एक था साथी ह्रदय का
मीत मेरे निज पलों का,
खो चुकी हूँ आज उसको
तुच्छ जिससे स्वर्ण भी था !
फिर उसे यदि खोज पाई
तो तुम्हें बतला सकूँगी
नयन का अभिसार क्या है !

वह मधुर मधुमास जिसमें
फूल, सौरभ, फाग जिसमें,
कोकिला के एक स्वर से
गूँज उठते राग जिसमें !
आ गया फिर भूल कर यदि
तो तुम्हीं कहने लगोगे
सृष्टि का श्रृंगार क्या है !

किरण

8 टिप्‍पणियां:

  1. bahut hi achhi aur mann ko chhune waali rachna...
    is baar mere blog par english poem jaroor padhein....

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  2. बहुत सुंदर भाव और भाषा चयन |
    आशा

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  3. तारीफ के लिए शब्द नहीं हैं. क्या बोलूं. बहुत सुंदर.

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  4. जो किसी भी मूल्य पर
    बीते दिवस लौटा सकी तो,
    मैं तुम्हें बतला सकूँगी
    जीत क्या है हार क्या है !



    श्रंगार रूप रस भाव शब्द हर लिहाज से एक खूबसूरत कविता ..यक़ीनन आपका काव्य पढ्नीय और सराहनीय है ..आपको पहली बार पढ़ा है लेकिन यक़ीनन काबिल-ए-दाद मन प्रसन्न हुआ .................दाद क़ुबूल करें
    आप जैसी लेखिका को मेरे भाव पसंद आये और मेरा हौसला बढाया ये मेरे लिए फक्र की बात है

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