मंगलवार, 4 मई 2010

धूल का अधिकार

मुझको फूलों से बहुत प्यार है लेकिन
अधिकार धूल का ही मुझ पर भारी है !

माना फूलों में है सुगंध मतवाली,
सुरभित जिससे उपवन की डाली-डाली,
इन फूलों से फल, फल से जीवन मिलता,
इन फूलों से श्रृंगार प्रकृति का खिलता,
पर मेरी धरती तो अवढर दानी है ,
इसकी महिमा देवों ने भी मानी है !
क्षण भंगुर वैभव, उपवन का क्या होगा,
मुझको धरती की समरसता प्यारी है !

सुनते हैं ब्रह्मा ने यह सृष्टि बनाई,
विष्णू ने पालन करके दिया बढाई,
शिव ने अपना संहारी चरण उठाया,
पल में संसृति का सुन्दर रूप मिटाया,
हैं पुरुषोत्तम श्रीराम गुणों के सागर,
कान्हा ने धर्म बचाया भू पर आकर,
हैं देव सदा रक्षक जग ने जाना है,
सब सिद्धिदात्र गणपति को ही माना है !
पर किसने उनका रूप रंग देखा है,
हमको पाषाणी प्रतिमा ही प्यारी है !

पाई देवों में भी विरोध की झाँकी,
पढ़ ली है इनकी कीर्ति कथा भी बाँकी,
ईर्ष्या की ज्वाला जलती उनमें पाई,
भय शंका भी तो उनमें रही समाई,
देखी उनमें भी पक्षपात की छाया,
उनको भी तो है भेंट भोग मन भाया,
पर उनके सब अवगुण हैं गुण बन जाते,
तब गुणी मनुज क्यों नहीं देव बन जाते ?
क्या होना है ऐसा देवत्व मना कर,
हमको अपनी मानवता ही प्यारी है !

नीलांगन में झिलमिल दीपक से जलते,
तारे केवल रजनी का ही तम हरते,
ये चन्दा सूरज भी उग कर छिप जाते,
आवश्यकतावश हम उन्हें जला न पाते,
उन पर न पतंगों की टोली मंडराती ,
उनके छिप जाने पर अंधियारी छाती,
तब अपना दीपक हमें जलाना पडता,
जिसकी ज्योती से मुग्ध पतंगा लड़ता,
चन्दा सूरज से बड़ी हमें अपनी यह
मिट्टी के दीपक की लौ ही प्यारी है !

किरण

10 टिप्‍पणियां:

  1. चन्दा सूरज से बड़ी हमें अपनी यह
    मिट्टी के दीपक की लौ ही प्यारी है !
    सुन्दर रचना

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  2. मिट्टी के दीपक की लौ ही प्यारी है

    वाह साधना जी वाह। बहुत प्यारी है ये पंक्ति।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  3. गहन विचार से सुसज्जित रचना....खूबसूरत

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  4. मिट्टी के दीपक की लौ ही प्यारी है

    -बहुत ही उम्दा रचना..आभार प्रस्तुति का.

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  5. -बहुत ही उम्दा रचना

    badhai aap ko is ke liye

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  6. "मुझको फूलों से प्यार बहुत , अधिकार धूल का ------"
    बहुतभाव पूर्ण रचना |
    आशा

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  7. तब अपना दीपक हमें जलाना पड़ता ...और इस दीपक की लौ ही प्यारी है ..
    बहुत बढ़िया ...!!

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  8. क्षण भंगुर वैभव, उपवन का क्या होगा,
    मुझको धरती की समरसता प्यारी है !
    Kitni sanjeedgee hai is rachana me!

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  9. मुझको फूलों से बहुत प्यार है लेकिन
    अधिकार धूल का ही मुझ पर भारी है !
    waah, bahut sahi kaha

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