गुरुवार, 8 अप्रैल 2010

खोया सा जीवन

यह मेरा खोया सा जीवन !
क्या फिर से पा जाऊँगी मैं
इस लुटी हुई दुनिया का धन !
यह मेरा खोया सा जीवन !

मेरी सूनी-सूनी रातें,
प्रिय की मीठी-मीठी बातें,
फिर याद दिला जातीं आकर,
बीते सपने, बीते मृदु क्षण !
यह मेरा खोया सा जीवन !

स्मृति फिर-फिर कर आ जाती,
इस मन में आग लगा जाती,
इस जली चिता के अंगारे
बुझ गए, बचे केवल कुछ कण !
यह मेरा खोया सा जीवन !

श्मशान बनी दुनिया मेरी,
योगिनी भावना की फेरी,
कह जाती पल-पल आ करके,
बन परवाना जल जा ओ जन !
यह मेरा खोया सा जीवन !

यह दीवानी क्यों दीवानी,
किसको भाती तेरी वाणी,
हो मौन होम कर दे पगली,
दुनिया की इच्छा पर तन मन !
यह मेरा खोया सा जीवन !

नयनों की सरिता शुष्क रहे,
बादल से जल की धार बहे,
तू देख खड़ी तेरा जीवन,
यूँ बरस पड़ा बन कर सावन !
यह मेरा खोया सा जीवन !

किरण

7 टिप्‍पणियां:

  1. कई रंगों को समेटे एक खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई

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  2. मेरी सूनी-सूनी रातें,
    प्रिय की मीठी-मीठी बातें,
    फिर याद दिला जातीं आकर,

    इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

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  3. कविता मन को छू गई |बहुत सुंदर भाव |
    आशा

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  4. kavita ki ek ek pankti mann me utar gayi...
    bahut behtareen....
    mere blog me is baar तुम मुझे मिलीं....
    jaroor padhein...
    aapke margdarshan ki jaroorat hogi....

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  5. "नयनों की सरिता शुष्क रहे,
    बादल से जल की धार बहे,
    तू देख खड़ी तेरा जीवन,
    यूँ बरस पड़ा बन कर सावन !
    यह मेरा खोया सा जीवन !"

    bahut badhiya ji,

    kunwar ji,

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  6. नयनों की सरिता शुष्क रहे,
    बादल से जल की धार बहे,
    तू देख खड़ी तेरा जीवन,
    यूँ बरस पड़ा बन कर सावन !
    यह मेरा खोया सा जीवन
    Bahut sundar rachana!

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