यह मेरा खोया सा जीवन !
क्या फिर से पा जाऊँगी मैं
इस लुटी हुई दुनिया का धन !
यह मेरा खोया सा जीवन !
मेरी सूनी-सूनी रातें,
प्रिय की मीठी-मीठी बातें,
फिर याद दिला जातीं आकर,
बीते सपने, बीते मृदु क्षण !
यह मेरा खोया सा जीवन !
स्मृति फिर-फिर कर आ जाती,
इस मन में आग लगा जाती,
इस जली चिता के अंगारे
बुझ गए, बचे केवल कुछ कण !
यह मेरा खोया सा जीवन !
श्मशान बनी दुनिया मेरी,
योगिनी भावना की फेरी,
कह जाती पल-पल आ करके,
बन परवाना जल जा ओ जन !
यह मेरा खोया सा जीवन !
यह दीवानी क्यों दीवानी,
किसको भाती तेरी वाणी,
हो मौन होम कर दे पगली,
दुनिया की इच्छा पर तन मन !
यह मेरा खोया सा जीवन !
नयनों की सरिता शुष्क रहे,
बादल से जल की धार बहे,
तू देख खड़ी तेरा जीवन,
यूँ बरस पड़ा बन कर सावन !
यह मेरा खोया सा जीवन !
किरण
कई रंगों को समेटे एक खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई
जवाब देंहटाएंमेरी सूनी-सूनी रातें,
जवाब देंहटाएंप्रिय की मीठी-मीठी बातें,
फिर याद दिला जातीं आकर,
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....
बहुत उम्दा रचना!
जवाब देंहटाएंकविता मन को छू गई |बहुत सुंदर भाव |
जवाब देंहटाएंआशा
kavita ki ek ek pankti mann me utar gayi...
जवाब देंहटाएंbahut behtareen....
mere blog me is baar तुम मुझे मिलीं....
jaroor padhein...
aapke margdarshan ki jaroorat hogi....
"नयनों की सरिता शुष्क रहे,
जवाब देंहटाएंबादल से जल की धार बहे,
तू देख खड़ी तेरा जीवन,
यूँ बरस पड़ा बन कर सावन !
यह मेरा खोया सा जीवन !"
bahut badhiya ji,
kunwar ji,
नयनों की सरिता शुष्क रहे,
जवाब देंहटाएंबादल से जल की धार बहे,
तू देख खड़ी तेरा जीवन,
यूँ बरस पड़ा बन कर सावन !
यह मेरा खोया सा जीवन
Bahut sundar rachana!