मुझे दे दिये स्वप्न के ये खिलौने
कहाँ तक सम्हालूँ, कहाँ पर सजाऊँ !
मुझे चाँदनी रात भाती नहीं है,
चमक तारकों की सुहाती नहीं है,
मुझे चाहिये स्नेह के दीप अनुपम
जिन्हें मैं जला कर जगत जगमगाऊँ !
यह बादल की रिमझिम मुझे छेड़ जाती,
यह बिजली दशा पर मेरी मुस्कुराती,
घटा मेरी आँखों में आकर छिपी है
जिसे चाहूँ जब मैं लुटाऊँ, बहाऊँ !
न आती मुझे प्रेम की लोरियाँ हैं,
न भाती प्रभाती मुझे त्याग की है,
मुझे चाहिये बेबसी के तराने
कि मैं ग़म के नग़मे बनाऊँ, सुनाऊँ !
वसंती पवन आज बौरा रहा है,
खिले फूल को चूम भौंरा रहा है,
जले दिल की दुनिया में उजड़ी बहारें
कहाँ पर बसाऊँ, कहाँ पर खिलाऊँ !
न मन्दिर, न मसजिद मुझे बरगलाये,
न मूरत किसी की मेरा मन लुभाये,
मुझे चाहिये एक तस्वीर ऐसी
कि जिस पर मिटूँ, ध्यान जिसका लगाऊँ !
नदी है या सागर न इसका पता है,
भँवर में पड़ी नाव तट लापता है,
मिले याद का एक सम्बल किसी का
कि जिसके सहारे उतर पार जाऊँ !
मुझे दे दिये स्वप्न के ये खिलौने
कहाँ तक सम्हालूँ, कहाँ पर सजाऊँ !
किरण
लाजवाब प्रस्तुती ....
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंएक बार फिर एक अदभुत रचना ... सुन्दर अभिव्यक्ति ..
जवाब देंहटाएंविकास पाण्डेय
www.vicharokadarpan.blogspot.com
मुझे चाँदनी रात भाती नहीं है,
जवाब देंहटाएंचमक तारकों की सुहाती नहीं है,
मुझे चाहिये स्नेह के दीप अनुपम
जिन्हें मैं जला कर जगत जगमगाऊँ !
In alfaazon ne mujhe meri ek rachna yaad dila dee...! Aapko chand alfaaz bhej doongi..! Aapke jaisee kshmata nahi hai lekin!
एक सार्थक रचना |सुंदर अभिब्यक्ति|
जवाब देंहटाएंआशा
जी ज़रूर क्षमा जी ! आपकी सराहना के लिये ह्र्दय से धन्यवाद ! आपकी रचना अवश्य पढना चाहूँगी ! मुझे प्रतीक्षा रहेगी !
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar....
जवाब देंहटाएंbehtareen rachna...
mere blog par is baar..
वो लम्हें जो शायद हमें याद न हों......
jaroor aayein...
भावपूर्ण !!!
जवाब देंहटाएंसाधना जी, सभी रचनाएँ बहुत सुंदर हैं. बहुत अच्छा लगा पढ़ कर.
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