सोमवार, 19 अप्रैल 2010

नाविक से

ले चल मेरी नौका पार !

भव सागर में बही जा रही,
नहीं किनारा कोई पा रही,
सुख दुःख की झंझा में पड़ कर
डूब रही मंझधार !
ले चल मेरी नौका पार !

नाविक मुझे वही तट भाये,
रहें जहाँ जग से ठुकराये,
जहाँ बसा हो एक अनोखा
पीड़ा का संसार !
ले चल मेरी नौका पार !

मैं भी उनमें घुलमिल जाऊँ,
उनके दुःख में दुःख बिसराऊँ,
सुखी जनों की कर अवहेला
करूँ दुखों को प्यार !
ले चल मेरी नौका पार !

अब नौका ले चलो वहाँ पर,
दुःख सागर तट मिलें जहाँ पर,
जिसके हर एक कण में गूँजे
करुणा की झंकार !
ले चल मेरी नौका पार !

आशा नागिन डस ना पाये,
निशा निराशा की हँस जाये,
अमा दिवा के शांत प्रहर में
जीवन का अभिसार !
ले चल मेरी नौका पार !

किरण

14 टिप्‍पणियां:

  1. आशा नागिन डस ना पाये,
    निशा निराशा की हँस जाये,
    अमा दिवा के शांत प्रहर में
    जीवन का अभिसार !
    ले चल मेरी नौका पार !


    वाह! माता जी को नमन!

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  2. अब नौका ले चलो वहाँ पर,
    दुःख सागर तट मिलें जहाँ पर,
    जिसके हर एक कण में गूँजे
    करुणा की झंकार !
    ले चल मेरी नौका पार !

    ye panktiyan bahut kuch kehti hain...

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  3. आशा नागिन डस ना पाये,
    निशा निराशा की हँस जाये,
    अमा दिवा के शांत प्रहर में
    जीवन का अभिसार !
    ले चल मेरी नौका पार !

    bahut khub



    shekhar kumawat


    http://kavyawani.blogspot.com

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  4. बहुत ही बढिया लिखा है आप ने ,वाह...

    जवाब देंहटाएं
  5. जीवन का अभिसार !
    ले चल मेरी नौका पार !


    माता जी को नमन!

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  6. आशा नागिन डस ना पाये,
    निशा निराशा की हँस जाये,
    अमा दिवा के शांत प्रहर में
    जीवन का अभिसार !
    ले चल मेरी नौका पार !
    बहुत सुन्दर गीत.

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  7. सुंदर अभिब्याक्ती और शब्द चयन |मन को छू गई |
    आशा

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  8. बेमिसाल शब्द और भाव...आप बहुत अच्छा लिखती हैं...बधाई...
    नीरज

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  9. नाविक मुझे वही तट भाये,
    रहें जहाँ जग से ठुकराये,
    क्या ख्वाहिश है यह आत्मसाती प्रवृत्ति ही तो कवि की ताकत है
    बेहद खूबसूरत रचना

    जवाब देंहटाएं
  10. सुंदर अभिब्याक्ती और शब्द चयन

    ...बेहद खूबसूरत रचना

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  11. अब नौका ले चलो वहाँ पर,
    दुःख सागर तट मिलें जहाँ पर,
    जिसके हर एक कण में गूँजे
    करुणा की झंकार !
    ले चल मेरी नौका पार !
    .....सुन्दर भावाभिव्यंजना
    .....लोक कल्याण हेतु समर्पित भावना को झंकृत कर प्रेरित करती हुई आपकी रचना मन:स्थल में गहरे उतरती है .......
    साभार

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