मन चलो एकांत में
सुख शान्ति से जीवन बिताने,
दु:ख कुछ जग का भुलाने,
आग कुछ उर की बुझाने !
हँस रहा जग देख तुझको
रुक न पल भर भी दिवाने,
बस चला चल राह अपनी
इक नयी दुनिया बसाने !
शून्य में चल गगन को
कुछ दु:खमयी ताने सुनाने,
व्यंग से कुचले ह्रदय के
भाव कुछ उसको दिखाने !
छोड़ दे ये मित्र सारे
हो चुके जो अब बेगाने,
शून्य से कर मित्रता
नैराश्य को आशा बनाने !
भार तू जग को अरे
अब रह न यों उसको दुखाने,
छोड़ मिथ्या मोह को रे
तोड़ दे बंधन पुराने !
क्षितिज के उस पार जा छिप
बैठ कर आँसू बहा ले,
निठुर जग की ज्वाल से रे
यह दुखी जीवन बचा ले !
किरण
क्षितिज के उस पार जा छिप
जवाब देंहटाएंबैठ कर आँसू बहा ले,
निठुर जग की ज्वाल से रे
sateek rachnaa.......
bahut sunder bhav aur utani hi sunder prastuti.
जवाब देंहटाएंअद्भुत। जिन्दगी का असली अर्थ छुपा है विचारों में।
जवाब देंहटाएंमनोव्यथा का अतिसुन्दर चित्रण | पढ़ कर बहुत शांती का अनुभव
जवाब देंहटाएंहोता है |
आशा
भार तू जग को अरे
जवाब देंहटाएंअब रह न यों उसको दुखाने,
छोड़ मिथ्या मोह को रे
तोड़ दे बंधन पुराने !
...बेहतरीन रचना.यही जिंदगी का फलसफा है.
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शब्द शिखर पर- "भूकम्प का पहला अनुभव"
भार तू जग को अरे
जवाब देंहटाएंअब रह न यों उसको दुखाने,
छोड़ मिथ्या मोह को रे
तोड़ दे बंधन पुराने
बेहतरीन.
सादर
भार तू जग को अरे
जवाब देंहटाएंअब रह न यों उसको दुखाने,
छोड़ मिथ्या मोह को रे
तोड़ दे बंधन पुराने !
किरणजी की हर रचना मन के अंदर तक पहुंचती है ...
हँस रहा जग देख तुझको
जवाब देंहटाएंरुक न पल भर भी दिवाने,
बस चला चल राह अपनी
इक नयी दुनिया बसाने !
sunder bhav prabal rachna ..!!
दिल को छूती पंक्तियाँ.
जवाब देंहटाएंभार तू जग को अरे
जवाब देंहटाएंअब रह न यों उसको दुखाने,
छोड़ मिथ्या मोह को रे
तोड़ दे बंधन पुराने
मनोव्यथा का अतिसुन्दर चित्रण .....