जीवन के मृदु क्षण मैं साथी
कैसे जाऊँ भूल !
तुम अनंत मैं अंत
चिरंतन है यह सुन्दर मेल ,
एक दूसरे पर अवलम्बित
है जीवन का खेल !
काटूँगी वियोग की घड़ियाँ
स्मृति झूला झूल !
जीवन के मृदु क्षण मैं साथी
कैसे जाऊँ भूल !
दो दिन को आता पतझड़ में
मंजुल मधुर वसंत,
कलियाँ खिल-खिल सुरभित करतीं
नित प्रति दिशा दिगंत !
कसक हृदय में सहसा
पड़ते तब ‘मृदु क्षण’ बन शूल !
जीवन के मृदु क्षण मैं साथी
कैसे जाऊँ भूल !
मोह न है कुछ इस जीवन का
और न ही कुछ लोभ,
ढूँढ रहा है पथ, यह पागल
प्राण ह्र्दय भर क्षोभ !
जहाँ शांति सागर बहता है
सुखमय जिसका कूल !
जीवन के मृदु क्षण मैं साथी
कैसे जाऊँ भूल !
किरण
"तुम अनंत और में अंत"
जवाब देंहटाएंबहुत कोमल भावना का मन स्पर्शी वर्णन
करती अभिव्यक्ति|
आशा
bahut hi gahara abhi vykti ,mann ko chhootii hui rachana.badhai.
जवाब देंहटाएंpoonam
सुन्दर रचना प्रस्तुत की है आपने.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना। बधाई
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर शव्दो से सजाया है आप ने इस सुंदर कविता को.बहुत सुंदर
धन्यवाद