वेदना के राग गाने को मिले स्वर साधना के ,
गीत तेरी वन्दना के मीत कैसे गा सकूंगी !
यामिनी ने फूल की सेजें बिछाईं
पा उपेक्षा चाँद की मुरझा गयी हैं ,
चाँदनी ने हर्ष की मणियाँ लुटाईं
ओस बन सारी धरा पर छा गयी हैं !
इस अमावस की अंधेरी रात में ओ रे अपरिचित
पंथ तेरे द्वार आने का कहाँ से पा सकूँगी !
गीत कैसे गा सकूँगी !
कामना की अनखिली कलियाँ लुटा कर
विरस पतझड़ में अकेली मैं खड़ी हूँ ,
देख कर विश्वास का मृगजल सुहाना
अधर सूखे तृप्त करने को अड़ी हूँ !
ले गयी हैं छीन कर मुस्कान पौधों की बहारें
फूल तेरी अर्चना को मैं कहाँ से पा सकूँगी !
गीत कैसे गा सकूँगी !
किरण
यामिनी ने फूल की सेजें बिछाईं
जवाब देंहटाएंपा उपेक्षा चाँद की मुरझा गयी हैं ,
चाँदनी ने हर्ष की मणियाँ लुटाईं
ओस बन सारी धरा पर छा गयी हैं !
इस अमावस की अंधेरी रात में ओ रे अपरिचित
पंथ तेरे द्वार आने का कहाँ से पा सकूँगी !
गीत कैसे गा सकूँगी ! adbhut
अपूर्व कल्पना |बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति |
जवाब देंहटाएंआशा
वाह!! बेहतरीन बिम्बों के साथ अद्भुत शिल्प!
जवाब देंहटाएंकामना की अनखिली कलियाँ लुटा कर
विरस पतझड़ में अकेली मैं खड़ी हूँ ,
देख कर विश्वास का मृगजल सुहाना
अधर सूखे तृप्त करने को अड़ी हूँ !
माता जी को प्रणाम एवं बधाई!!
कामना की अनखिली कलियाँ लुटा कर
जवाब देंहटाएंविरस पतझड़ में अकेली मैं खड़ी हूँ ,
देख कर विश्वास का मृगजल सुहाना
अधर सूखे तृप्त करने को अड़ी हूँ !
ले गयी हैं छीन कर मुस्कान पौधों की बहारें
फूल तेरी अर्चना को मैं कहाँ से पा सकूँगी !
गीत कैसे गा सकूँगी !
बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति है। अच्छी लगी।शुभकामनायें
लगा जैसे सुमित्रानन्दन पंत गीतांजलि रच रहे हों।
जवाब देंहटाएंआप सभी का बहुत बहुत आभार !
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