बुधवार, 17 मार्च 2010

उलझा जीवन

मुझे छोड़ दो जीवन साथी
तुम अपने पथ पर बढ़ जाओ,
मेरी उर वीणा मत छेड़ो
गा सकते हो यदि तुम, गाओ !
हँस न सकूँगी मैं, पाली है
अंतर में पीड़ा क्षण-क्षण,
फूट उठेंगे दुखते छाले
छेड़ इन्हें मत और दुखाओ !
मेरी उर वीणा मत छेड़ो,
गा सकते हो यदि तुम, गाओ !

सखे कहाँ तक इस संसृति में
मैं पत्थर बन कर विचरूँगी,
आशा और निराशा की
कैसे कब तक मनुहार करूँगी !
मिटा चुकी सारे सुख सपने
अब न किसी का ध्यान भी आता !
मेरे इस पागलपन के संग
सखे न तुम पागल बन जाओ,
मेरी उर वीणा मत छेड़ो
गा सकते हो यदि तुम, गाओ !

मैं हूँ शून्य दीप वह जिसका
स्नेह जल चुका तिल-तिल करके,
मैं वह सुमन लुटा कर सौरभ
बिखर चुका जो कण-कण बन के
मैं वह पात्र बिखर कर जिसका
जीवन शून्य बना जाता है,
मेरे इस उलझे जीवन की
लड़ियाँ साथी मत सुलझाओ !
मेरी उर वीणा मत छेड़ो
गा सकते हो यदि तुम, गाओ !

किरण

8 टिप्‍पणियां:

  1. मेरे इस उलझे जीवन की
    लड़ियाँ साथी मत सुलझाओ !
    मेरी उर वीणा मत छेड़ो
    गा सकते हो यदि तुम, गाओ
    आप लाजवाब लिखती हैं मुझ से किसी ने पूछा था आपको किस की रचनायें सब से अधिक अच्छी लगती हैं तो सब से पहले आपका नाम ही जुबान पर आया। शुभकामनायें

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  2. हर रचना एक से एक लाजबाब!!और प्रस्तुत करें.

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  3. बहुत बहुत धन्यवाद निर्मला जी एवम समीर जी ! अपनी मम्मी की रचनायें आप सभी तक पहुँचा कर मुझे कितना सुख और आत्मिक संतोष प्राप्त हो रहा है उसे शब्दों में व्यक्त कर पाना मेरे लिये नितांत असम्भव है ! आज मेरी वर्षों की साध पूर्ण हो रही है ! सराहना के लिये आपका बहुत बहुत आभार !

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  4. रचना में निहित वेदना साफ़ झलकती है....माँ के प्रति आपके उदगार सराहनीय हैं....उनकी रचना पाठकों तक पहुँचाने के लिए आभार

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  5. गा सकते हो यदि तुम, गाओ !
    हँस न सकूँगी मैं, पाली है
    अंतर में पीड़ा क्षण-क्षण,
    फूट उठेंगे दुखते छाले

    बहुत ही गहरे भावों के साथ बेहतरीन अभिव्‍यक्ति, बधाई ।

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  6. गहराई तक छूते भाव |बहुत ह्रदय छूते भाव |
    आशा

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