तुम जीवन दीप बुझा दो
मैं शमशान जगाने आती हूँ !
तुम गीत क्रांति के गाकर
विद्रोही करते मानव को,
तुम सुना काव्य विप्लवकारी
चेताते सोये दानव को,
तुम दावानल सुलगा दो
मैं जल कण बरसाने आती हूँ !
तुम नये सृजन के स्वप्न दिखा
भोले जन जीवन ठगते हो,
तुम नव जागृति कह भूखों के
मुख से ले रोटी भगते हो,
तुम हाहाकार मचा दो
मैं करुणा बिखराने आती हूँ !
तुम मधु ऋतु में यों जा खोये
आगत का ध्यान नहीं लाये
क्या जाने कब इस धरती पर
भीषण निदाध आकर छाये,
तुम पतझड़ ला फैला दो
मैं भूतल सरसाने आती हूँ !
यह शरद प्रभा आ क्षण भर को
जीवन का सत्य भुलाती है,
चिर शाश्वत तम की है छाया
छल के पट में बिलमाती है,
तुम अमाँ रात्रि को छा दो
मैं चिर ज्योति जगाने आती हूँ !
किरण
तुम नये सृजन के स्वप्न दिखा
जवाब देंहटाएंभोले जन जीवन ठगते हो,
तुम नव जागृति कह भूखों के
मुख से ले रोटी भगते हो,
तुम हाहाकार मचा दो
मैं करुणा बिखराने आती हूँ !
........लाजवाब पंक्तियाँ ..........
तुम अमाँ रात्रि को छा दो
जवाब देंहटाएंमैं चिर ज्योति जगाने आती हूँ !
कितना सुन्दर भाव है.
बेहतरीन
निराशा और कष्ट में भी दीपक जलाए रखने का संकल्प ही बहुत बड़ा संबल है साधना जी !
जवाब देंहटाएंतुम नये सृजन के स्वप्न दिखा
जवाब देंहटाएंभोले जन जीवन ठगते हो,
तुम नव जागृति कह भूखों के
मुख से ले रोटी भगते हो,
तुम हाहाकार मचा दो
मैं करुणा बिखराने आती हूँ !
वाह बहुत सुन्दर रचना। बधाई
तुम मधु ऋतु में यों जा खोये
जवाब देंहटाएंआगत का ध्यान नहीं लाये
क्या जाने कब इस धरती पर
भीषण निदाध आकर छाये,
waah
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जवाब देंहटाएंसुंदर अभिब्यक्ति |हर शब्द गहरे सोच में डूबा हुआ प्रतीत होता है |
जवाब देंहटाएंआशा
अद्भुत रचना
जवाब देंहटाएंपुन: सबका धन्यवाद एवम आभार !
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