सोमवार, 15 मार्च 2010

स्वप्न को भी बाँध लूँगी !

स्वप्न को भी बाँध लूँगी
आज जागृति के प्रहर में !
चन्द्र को भी साध लूँगी
कल्पनाओं के मुकुर में !

साधना को इस प्रकृति के
उपकरण नव राग देंगे ,
जागरण के नवल पथ पर
श्रमिक को अनुराग देंगे ,
नव नियति के गीत गूँजेंगे
निराले चर अचर में !
स्वप्न को भी बाँध लूँगी
आज जागृति के प्रहर में !

जोड़ कर नभ के कुसुम मैं
अब प्रकृति पूजन करूँगी ,
त्याग श्रद्धा प्रेम के रख दीप
जग ज्योतित करूँगी ,
कोकिला की मधुर स्वर लहरी
भरूँगी निज अधर में !
स्वप्न को भी बाँध लूँगी
आज जागृति के प्रहर में !

है सुहानी मिलन बेला
देव अर्चन को तुम्हारे ,
अमिय कण संचित करूँगी
शांत सुरसरि के किनारे ,
अब नया जीवन भरूँगी
गगन गंगा की लहर में !
स्वप्न को भी बाँध लूँगी
आज जागृति के प्रहर में !

किरण

8 टिप्‍पणियां:

  1. स्वप्न को भी बाँध लूँगी
    आज जागृति के प्रहर में !
    चन्द्र को भी साध लूँगी

    सुंदर शब्दों के साथ.... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....

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  2. स्वप्न को भी बाँध लूँगी
    आज जागृति के प्रहर में !


    बहुत सुन्दर...आभार इस प्रस्तुति का माता जी की रचना के...

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  3. स्वप्न को भी बाँध लूँगी
    आज जागृति के प्रहर में !
    Bahut hi sundar rachana....Aabhar!

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  4. जोड़ कर नभ के कुसुम मैं
    अब प्रकृति पूजन करूँगी ,
    त्याग श्रद्धा प्रेम के रख दीप
    जग ज्योतित करूँगी ,
    कोकिला की मधुर स्वर लहरी
    भरूँगी निज अधर में !
    स्वप्न को भी बाँध लूँगी
    आज जागृति के प्रहर में !
    साधना जी शब्द नही हैं इस रचना के बारे मे कुछ कहूँ। लाजवाब रचना है बधाई आपको।

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  5. अब नया जीवन भरूँगी
    गगन गंगा की लहर में !
    स्वप्न को भी बाँध लूँगी
    आज जागृति के प्रहर में !
    बहुत सुन्दर.

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