स्वप्न को भी बाँध लूँगी
आज जागृति के प्रहर में !
चन्द्र को भी साध लूँगी
कल्पनाओं के मुकुर में !
साधना को इस प्रकृति के
उपकरण नव राग देंगे ,
जागरण के नवल पथ पर
श्रमिक को अनुराग देंगे ,
नव नियति के गीत गूँजेंगे
निराले चर अचर में !
स्वप्न को भी बाँध लूँगी
आज जागृति के प्रहर में !
जोड़ कर नभ के कुसुम मैं
अब प्रकृति पूजन करूँगी ,
त्याग श्रद्धा प्रेम के रख दीप
जग ज्योतित करूँगी ,
कोकिला की मधुर स्वर लहरी
भरूँगी निज अधर में !
स्वप्न को भी बाँध लूँगी
आज जागृति के प्रहर में !
है सुहानी मिलन बेला
देव अर्चन को तुम्हारे ,
अमिय कण संचित करूँगी
शांत सुरसरि के किनारे ,
अब नया जीवन भरूँगी
गगन गंगा की लहर में !
स्वप्न को भी बाँध लूँगी
आज जागृति के प्रहर में !
किरण
स्वप्न को भी बाँध लूँगी
जवाब देंहटाएंआज जागृति के प्रहर में !
चन्द्र को भी साध लूँगी
सुंदर शब्दों के साथ.... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....
स्वप्न को भी बाँध लूँगी
जवाब देंहटाएंआज जागृति के प्रहर में !
बहुत सुन्दर...आभार इस प्रस्तुति का माता जी की रचना के...
स्वप्न को भी बाँध लूँगी
जवाब देंहटाएंआज जागृति के प्रहर में !
Bahut hi sundar rachana....Aabhar!
जोड़ कर नभ के कुसुम मैं
जवाब देंहटाएंअब प्रकृति पूजन करूँगी ,
त्याग श्रद्धा प्रेम के रख दीप
जग ज्योतित करूँगी ,
कोकिला की मधुर स्वर लहरी
भरूँगी निज अधर में !
स्वप्न को भी बाँध लूँगी
आज जागृति के प्रहर में !
साधना जी शब्द नही हैं इस रचना के बारे मे कुछ कहूँ। लाजवाब रचना है बधाई आपको।
A beautiful poem with positive thinking .
जवाब देंहटाएंAsha
swapn ko baandh lene ki soch adbhut hai,
जवाब देंहटाएंbahut badhiyaa
अब नया जीवन भरूँगी
जवाब देंहटाएंगगन गंगा की लहर में !
स्वप्न को भी बाँध लूँगी
आज जागृति के प्रहर में !
बहुत सुन्दर.
हार्दिक अभिब्यक्ति |
जवाब देंहटाएंआशा