रविवार, 30 मई 2010

रीते आँगन का सूनापन

रीते आँगन का सूनापन
भर जाता दसों दिशाओं में,
विगलित हो जाता है कण-कण !
रीते आँगन का सूनापन !

नव पल्लव आच्छादित पीपल
रक्तिम तन सिसकी सी भरता,
सूने कोटर के पास बया
चंचल हो परिक्रमा करता,
उसके नन्हे-मुन्नों के स्वर
ना उसे सुनाई देते हैं,
पीपल की नंगी बाहों पर
नि:संग उसाँसें लेते हैं,
उनके अंतर की व्यथा कथा
नि:स्वर भर जाती अंतर्मन !
रीते आँगन का सूनापन !

क्षण भर को कोकिल आ करके
उनको आश्वासन दे जाती,
तोतों, मोरों, चिड़ियों की धुन
भी पीर न मन की हर पाती,
बढ़ जाती और वेदना ही
नयनों में सावन की रिमझिम,
स्वांसों में दुःख की शहनाई
बज उठती है हर पल हर क्षण,
इन सबमें सुख की क्षीण किरण
पा लेता मेरा पागल मन !
रीते आँगन का सूनापन !

किरण

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूबसूरत रचना..

    नयनों में सावन की रिमझिम,
    स्वांसों में दुःख की शहनाई
    बज उठती है हर पल हर क्षण,
    इन सबमें सुख की क्षीण किरण

    मनमोहक पंक्तियाँ

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  2. बहुत सुंदर भाव |अति उत्तम
    आशा

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  3. Khooob samajh sakti hun aise soonepan ko!Bahut sundar shabdankan!

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  4. बहुत सुंदर भाव

    badhai aap ko is ke liye

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  5. नव पल्लव आच्छादित पीपल
    रक्तिम तन सिसकी सी भरता,
    सूने कोटर के पास बया
    चंचल हो परिक्रमा करता ...बहुत सुन्दर रचना ...!

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  6. ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.

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