रीते आँगन का सूनापन
भर जाता दसों दिशाओं में,
विगलित हो जाता है कण-कण !
रीते आँगन का सूनापन !
नव पल्लव आच्छादित पीपल
रक्तिम तन सिसकी सी भरता,
सूने कोटर के पास बया
चंचल हो परिक्रमा करता,
उसके नन्हे-मुन्नों के स्वर
ना उसे सुनाई देते हैं,
पीपल की नंगी बाहों पर
नि:संग उसाँसें लेते हैं,
उनके अंतर की व्यथा कथा
नि:स्वर भर जाती अंतर्मन !
रीते आँगन का सूनापन !
क्षण भर को कोकिल आ करके
उनको आश्वासन दे जाती,
तोतों, मोरों, चिड़ियों की धुन
भी पीर न मन की हर पाती,
बढ़ जाती और वेदना ही
नयनों में सावन की रिमझिम,
स्वांसों में दुःख की शहनाई
बज उठती है हर पल हर क्षण,
इन सबमें सुख की क्षीण किरण
पा लेता मेरा पागल मन !
रीते आँगन का सूनापन !
किरण
बहुत अच्छी रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना..
जवाब देंहटाएंनयनों में सावन की रिमझिम,
स्वांसों में दुःख की शहनाई
बज उठती है हर पल हर क्षण,
इन सबमें सुख की क्षीण किरण
मनमोहक पंक्तियाँ
bahut sundar geet
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव |अति उत्तम
जवाब देंहटाएंआशा
Khooob samajh sakti hun aise soonepan ko!Bahut sundar shabdankan!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव
जवाब देंहटाएंbadhai aap ko is ke liye
अद्भुत रचना!
जवाब देंहटाएंकाबिल-ए-तारीफ
जवाब देंहटाएंsundar mn mohnevali rachna
जवाब देंहटाएंनव पल्लव आच्छादित पीपल
जवाब देंहटाएंरक्तिम तन सिसकी सी भरता,
सूने कोटर के पास बया
चंचल हो परिक्रमा करता ...बहुत सुन्दर रचना ...!
ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.
जवाब देंहटाएं