गुरुवार, 13 मई 2010

आकांक्षा

अश्रु मेरी अमर निधि हैं, तुम मधुर मुस्कान ले लो,
किन्तु प्रियतम तुम न मेरे भग्न उर के साथ खेलो !

है मुझे अभिशाप ही प्रिय आस क्यों वरदान की फिर,
क्या कभी सुखमय पलों की कल्पना रह सकी स्थिर !

अब न उतनी शक्ति मुझमें सह सकूँ अवहेलना प्रिय,
और साहस भी न इतना कह सकूँ जो वेदना प्रिय !

मैं न दीपक ही बनी जो ज्वाल प्राणों में सँजोती,
और पागल शलभ भी ना बन सकी जो प्राण खोती !

मैं कलंकी चन्द्र के संग क्षीण क्षण-क्षण हो रही हूँ,
सखे वारिद की कनी बन भार दुःख का ढो रही हूँ !

खिलें जग में फूल सुख के, चुन रही मैं शूल साथी,
व्यथित उर आँसू लुटाता, हँस रहा जग निठुर साथी !

पुष्प वे ही धन्य हैं प्रिय कंठ की जो माल होते,
स्वेद सौरभ से लिपट कर स्नेह सरि में दुःख डुबोते !

चाहती पर मैं न बनना पुष्प जो प्रिय उर लगायें,
धूलि कण ही बन सकूँ जो प्रिय चरण में लिपट जायें !

किरण

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बेहतरीन रचना..अद्भुत!! माता जी को नमन!


    एक विनम्र अपील:

    कृपया किसी के प्रति कोई गलत धारणा न बनायें.

    शायद लेखक की कुछ मजबूरियाँ होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए अपने आसपास इस वजह से उठ रहे विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.

    हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.

    -समीर लाल ’समीर’

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  2. एक एक पंक्ति अपने आप में गम्भीर और अर्थपूर्ण। वाह - सुन्दर।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  3. खिलें जग में फूल सुख के, चुन रही मैं शूल साथी,
    व्यथित उर आँसू लुटाता, हँस रहा जग निठुर साथी !
    kya samarpan bhaav hai rachna mein
    hight of divotion
    yakinan ...tariif ke kabil
    kya shabd vinyas hai aapka ....uniqe
    kuch shabd to aam insan ke sar ke upar se nikal jate h
    jaise ................भग्न
    mujhe bhi samajh nahi aaya iska matlab to
    Nirala ji ke rachnaoo ka rang dikhta hai aapki kalam mein



    aapka lekhan utkrist hai

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  4. bahut hi khub likha hai aapne...
    uttam shabdon se buni gayi kavita..
    yun hi likhti rahein...
    regards..

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  5. चाहती पर मैं न बनना पुष्प जो प्रिय उर लगायें,
    धूलि कण ही बन सकूँ जो प्रिय चरण में लिपट जायें !
    Bahut uchh star ka lekhan hai aapka...!

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  6. निर्झर जी , आपकी सराहना एवं प्रशंसा के लिए ह्रदय से आभारी हूँ ! भग्न का अर्थ होता है खंडित अथवा टूटा हुआ ! यदि कहीं आपको कभी कोई कठिनाई पेश आये तो अवश्य याद कीजियेगा ! मैं सदैव आपकी सहायता के लिए तत्पर रहूँगी ! सधन्यवाद !

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  7. पुष्प वे ही धन्य हैं प्रिय कंठ की जो माल होते,
    स्वेद सौरभ से लिपट कर स्नेह सरि में दुःख डुबोते ...

    Anupam rachna ... har shabd jaise ganga mein nahaaya huva ... lajawaab ...

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  8. बहुत सुंदर भाव लिए रचना |बहुत खूब |
    आशा

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  9. अब न उतनी शक्ति मुझमें सह सकूँ अवहेलना प्रिय,
    और साहस भी न इतना कह सकूँ जो वेदना प्रिय !

    aabhaar! kitna sundar geet sanjha kiya aapney SADHNA di

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