चाँद तारे दीवाली मनाते रहे,
रात जगती रही स्वप्न आते रहे !
चंद्रिका ने दिया आँसुओं को लुटा,
उनको ऊषा ने निज माँग में भर लिया,
पुष्प झरते रहे, वृक्ष लुटते रहे,
भ्रमर आते रहे, गुनगुनाते रहे !
चाँद तारे दीवाली मनाते रहे,
रात जगती रही, स्वप्न आते रहे !
छोड़ हिम को सरित बह चली चंचला,
सिंधु की शांत सुषमा ने उसको छला,
वीचि हँसती रही, खिलखिलाती रही,
तट उन्हें बाँह फैला बुलाते रहे !
चाँद तारे दीवाली मनाते रहे,
रात जगती रही स्वप्न आते रहे !
कुहुक कर कोकिला के कहा “कौन है ?’
“पी कहाँ”, कह पपीहा हुआ मौन है,
मेघ उत्तर न देकर बिलखते रहे,
मोर उन्मत्त खुशियाँ मनाते रहे !
चाँद तारे दीवाली मनाते रहे,
रात जगती रही स्वप्न आते रहे !
सृष्टि का क्रम सदा से विषम ही रहा,
सुख औ दुख का जो समन्वय रहा,
कुछ तड़पते रहे, कुछ बिलखते रहे,
कुछ मिटा और को सुख सजाते रहे !
चाँद तारे दीवाली मनाते रहे,
रात रोती रही स्वप्न आते रहे !
किरण
सुंदर अभिव्यक्ति,आभार
जवाब देंहटाएंवाह वाह! हर बार की तरह ही उम्दा!
जवाब देंहटाएंचाँद तारे दीवाली मनाते रहे,
जवाब देंहटाएंरात रोती रही स्वप्न आते रहे !
Aapki rachnaon ka gar sangrah ho to apne paas rakhna chahun!
चाँद तारों की दिवाली अनोखी
जवाब देंहटाएंरोती रातों को जो स्वप्न दिखाए ...
सुन्दर ...!!
सृष्टि का क्रम सदा से विषम ही रहा,
जवाब देंहटाएंसुख औ दुख का जो समन्वय रहा,
कुछ तड़पते रहे, कुछ बिलखते रहे,
कुछ मिटा और को सुख सजाते रहे !
खूबसूरत रचना.....आप बहुत सार्थक कार्य कर रही हैं..अपनी माताजी कि सुन्दर रचनाएँ हम सब तक पहुंचा कर....आभार
बहुत से गहरे एहसास लिए है आपकी रचना ...
जवाब देंहटाएंसराहना के लिए आप सभी की बहुत आभारी हूँ ! मेरा यह छोटा सा प्रयास यदि सुख और संतोष तथा आत्मतुष्टि का एक नन्हा सा भी अंश मेरी माँ के पास उनके स्वर्ग के संसार तक पहुँचा सका तो मैं स्वयं को धन्य समझूँगी और मेरा यह प्रयास सफल हो जाएगा !
जवाब देंहटाएंएक और सुंदर प्रस्तुति के लिए बहुत साधुवाद |
जवाब देंहटाएंआशा
हर बार की तरह लाजवाब !!
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