बुधवार, 26 मई 2010

* तारे *

ये रजनी के उर क्षत सजनी !

चम-चम करते रहते प्रतिपल,
झर-झर झरते रहते हर क्षण,
पी-पी कर ह्रदय रक्त पागल
ये लाल बने रहते सजनी !
ये रजनी के उर क्षत सजनी !

वह दीवानी ना जान सकी,
पागल सुख के क्षण पा न सकी,
सूने उर में भर अंधकार
जग को चिर सुख देती सजनी !
ये रजनी के उर क्षत सजनी !

दुखिया जीवन में हाय न कुछ,
रोना, रोकर खोना सब कुछ,
सीखा रजनी से मैंने भी
यह धैर्य अटल अद्भुत सजनी !
ये रजनी के उर क्षत सजनी !

उसके उर क्षत मेरे वे पथ,
औ प्रिय नयनों के बने सुरथ,
मेरे ये उत्सुक नयन वहाँ
उनको लख सुख पाते सजनी !
ये रजनी के उर क्षत सजनी !

किरण

9 टिप्‍पणियां:

  1. उसके उर क्षत मेरे वे पथ,
    औ प्रिय नयनों के बने सुरथ,
    मेरे ये उत्सुक नयन वहाँ
    उनको लख सुख पाते सजनी !
    ये रजनी के उर क्षत सजनी !

    वाह ! बहुत खूब ,,,अति सुन्दर

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  2. बेहतरीन शब्द चयन के साथ आकर्षक प्रस्तुति

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  3. अदभुद |बहुत सुंदर शब्द चयन |
    आशा

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  4. Bahut,bahut sundar rachna....hameshaki tarah..aapki rachnape tippanee dena bada kathin hota hai...!Samajhme nahi aata kaunse alfaaz istemaal kiye jayen!

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  5. आपकी रचनाओं में एक अलग अंदाज है,

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  6. दुखिया जीवन में हाय न कुछ,
    रोना, रोकर खोना सब कुछ,
    सीखा रजनी से मैंने भी
    यह धैर्य अटल अद्भुत सजनी !
    ये रजनी के उर क्षत सजनी !

    apki maa ji ki ye kavitaye sach me sahezne laayak hi hain. kritarth hui apki...is rachna ko padh kar. sadhuwad.

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