बुधवार, 19 मई 2010

सखी न कुछ भी भाता आज !

सखी न कुछ भी भाता आज !
गुंजित मधुर कूक कोयल की,
मादक अलियों का सरसाज !
सखी न कुछ भी भाता आज !

आज न भाता मदिर भाव से
प्रमुदित ऊषा का आना,
आज न भाता मृदु मलयानिल
का सुमनों को छू जाना,
अरी न भाती चंद्र ज्योत्सना
और न रजनी का प्रिय साज !
सखी न कुछ भी भाता आज !

आज न जाने कैसा मन है,
कैसा है संसृति का राग,
मेरी उर वीणा से प्रतिपल,
झंकृत क्यों है करूण विहाग,
हुआ न जाने क्या री मुझको
भूली हूँ सारे ही काज !
सखी न कुछ भी भाता आज !

चलित चित्र से मधुर गत दिवस
क्यों आते स्मृति में आज,
उत्सुक हो उन्मत्त नयन क्यों
सजा रहे हैं नव सुख साज,
अश्रु लुटाते पल क्षण जीवन,
छाया असफलता का राज !
सखी न कुछ भी भाता आज !

किरण

8 टिप्‍पणियां:

  1. लाजवाब प्रस्तुती .....सुन्दर मन भाव कि रचना ...

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  2. man ke bhaav bade kareene se sajaaye hain..bahut khoob...naman

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  3. एक बहुत ही मधुर प्रिय गीत याद आ रहा है ...
    " ए सखी राधिका बावरी हो गयी , श्याम को खोजते आप ही खो गयी "
    सखी को कुछ नहीं भाता आज मगर फिर भी इतनी सुन्दर कविता
    बहुत भायी ...!!

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  4. उत्कृष्ट गीत । उत्तर रामचरित का स्मरण आ गया ।

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  5. बहुत ही सुन्दर रचना……………………भावों का सुन्दर सम्प्रेषण्।

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  6. अश्रु लुटाते पल क्षण -----
    मन को छू जाने वाले भाव |बहुत सुंदर रचना |
    आशा

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  7. हमेशा की तरह ये पोस्ट भी बेह्तरीन है
    कुछ लाइने दिल के बडे करीब से गुज़र गई....

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