सखी न कुछ भी भाता आज !
गुंजित मधुर कूक कोयल की,
मादक अलियों का सरसाज !
सखी न कुछ भी भाता आज !
आज न भाता मदिर भाव से
प्रमुदित ऊषा का आना,
आज न भाता मृदु मलयानिल
का सुमनों को छू जाना,
अरी न भाती चंद्र ज्योत्सना
और न रजनी का प्रिय साज !
सखी न कुछ भी भाता आज !
आज न जाने कैसा मन है,
कैसा है संसृति का राग,
मेरी उर वीणा से प्रतिपल,
झंकृत क्यों है करूण विहाग,
हुआ न जाने क्या री मुझको
भूली हूँ सारे ही काज !
सखी न कुछ भी भाता आज !
चलित चित्र से मधुर गत दिवस
क्यों आते स्मृति में आज,
उत्सुक हो उन्मत्त नयन क्यों
सजा रहे हैं नव सुख साज,
अश्रु लुटाते पल क्षण जीवन,
छाया असफलता का राज !
सखी न कुछ भी भाता आज !
किरण
लाजवाब प्रस्तुती .....सुन्दर मन भाव कि रचना ...
जवाब देंहटाएंman ke bhaav bade kareene se sajaaye hain..bahut khoob...naman
जवाब देंहटाएंएक बहुत ही मधुर प्रिय गीत याद आ रहा है ...
जवाब देंहटाएं" ए सखी राधिका बावरी हो गयी , श्याम को खोजते आप ही खो गयी "
सखी को कुछ नहीं भाता आज मगर फिर भी इतनी सुन्दर कविता
बहुत भायी ...!!
लाजवाब रचना बधाई
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट गीत । उत्तर रामचरित का स्मरण आ गया ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना……………………भावों का सुन्दर सम्प्रेषण्।
जवाब देंहटाएंअश्रु लुटाते पल क्षण -----
जवाब देंहटाएंमन को छू जाने वाले भाव |बहुत सुंदर रचना |
आशा
हमेशा की तरह ये पोस्ट भी बेह्तरीन है
जवाब देंहटाएंकुछ लाइने दिल के बडे करीब से गुज़र गई....