रविवार, 23 मई 2010

साथी मेरे गीत खो गए !

साथी मेरे गीत खो गए !

उस दिन चन्दा अलसाया था,
मेरे अंगना में आया था,
किरणों के तारों पर उसने
धीमे-धीमे कुछ गाया था !
जग के नयनों में स्वप्नों के,
साज सजे, विश्वास सो गए !
साथी मेरे गीत खो गए !

रजनी थी सुख से मुस्काई,
मधु ऋतु में फूली अमराई,
शांत कोटरों में सोई कोकिल
ने फिर से ली अंगड़ाई !
पीत पत्र बिखरे पेड़ों के,
अस्त-व्यस्त श्रृंगार हो गए !
साथी मेरे गीत खो गए !

किरण

9 टिप्‍पणियां:

  1. शांत कोटरों में सोई
    कोकिल ने फिर से ली अंगड़ाई!
    "साथी मेरे गीत खो गए!" शानदार गीत पढवाने के लिए आभार

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  2. बहुत सुंदर भाव लिए कविता |बड़ी अच्छी लगी |
    आशा

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  3. यह कविता चर्चा मंच पर ली है

    http://charchamanch.blogspot.com/2010/05/163.html

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  4. क्या कहूँ समझ में नहीं आ रहा है ... इतनी सुन्दर कविता कि प्रशंसा के लिए मेरे पास शब्द नहीं है ...

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  5. सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

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  6. आकर्षक शब्द चयन के साथ बेहतरीन प्रस्तुति।

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