साथी मेरे गीत खो गए !
उस दिन चन्दा अलसाया था,
मेरे अंगना में आया था,
किरणों के तारों पर उसने
धीमे-धीमे कुछ गाया था !
जग के नयनों में स्वप्नों के,
साज सजे, विश्वास सो गए !
साथी मेरे गीत खो गए !
रजनी थी सुख से मुस्काई,
मधु ऋतु में फूली अमराई,
शांत कोटरों में सोई कोकिल
ने फिर से ली अंगड़ाई !
पीत पत्र बिखरे पेड़ों के,
अस्त-व्यस्त श्रृंगार हो गए !
साथी मेरे गीत खो गए !
किरण
शांत कोटरों में सोई
जवाब देंहटाएंकोकिल ने फिर से ली अंगड़ाई!
"साथी मेरे गीत खो गए!" शानदार गीत पढवाने के लिए आभार
बहुत सुंदर भाव लिए कविता |बड़ी अच्छी लगी |
जवाब देंहटाएंआशा
bahut sundar ...
जवाब देंहटाएंawesome !
जवाब देंहटाएंयह कविता चर्चा मंच पर ली है
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com/2010/05/163.html
क्या कहूँ समझ में नहीं आ रहा है ... इतनी सुन्दर कविता कि प्रशंसा के लिए मेरे पास शब्द नहीं है ...
जवाब देंहटाएंkhoya hua yah geet padh kar bahut achha laga...
जवाब देंहटाएंसार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंआकर्षक शब्द चयन के साथ बेहतरीन प्रस्तुति।
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