मेरे प्राणों की पीड़ा दो भागों में बँट कर के,
बन कर आँसू छलक पड़ी है दो बूँदों में ढल के !
या आशा और निराशा के दो फल बन स्वयम् फले ये,
अपनी गाथा को कहने गालों पर ढुलक चले ये !
हैं ये करुणा के द्योतक या ज्वाला की चिन्गारी,
या जगती का जीवन है नयनों का पानी खारी !
दावा बन ह्रदय जलाया अब बन कर जल नयनों से,
छल छल कर कथा व्यथा की कह रहे मौन नयनों से !
ओ दृगजल के दो बिन्दू कुछ तो बतलाते जाओ,
क्या भेद भरा है तुममें यह तो समझाते जाओ !
इन प्राणों की पीड़ा को तुमने सहचरी बनाया,
जब जली व्यथा ज्वाला में तुमने निज अंक लगाया !
मेरी पीड़ा के सहचर या तो गाथा कह जाओ,
या संग में अपने ही तुम उसे बहा ले जाओ !
किरण
मेरी पीड़ा के सहचर
जवाब देंहटाएंया तो गाथा कह जाओ
या संग बहा ले जाओ ...
वाह !
मौन व्यथा नैनो की पीड़ छलक कर आंसुओं में सीधे दिल तक पहुँच रही है ...
आह !
ओ दृगजल के दो बिन्दू कुछ तो बतलाते जाओ,
जवाब देंहटाएंक्या भेद भरा है तुममें यह तो समझाते जाओ !
किरण जी की कविताओं में एक अलग ही आनंद है...कविताओं के साथ स्वयं को बहता हुआ महसूस होता है ....सुन्दर कृति
हैं ये करुणा के द्योतक या ज्वाला की चिन्गारी,
जवाब देंहटाएंया जगती का जीवन है नयनों का पानी खारी !
दावा बन ह्रदय जलाया अब बन कर जल नयनों से,
छल छल कर कथा व्यथा की कह रहे मौन नयनों से !
साधना जी बहुत भावमय है आपकी रचना बधाई
मेरी पीड़ा के सहचर या तो गाथा कह जाओ,
जवाब देंहटाएंया संग में अपने ही तुम उसे बहा ले जाओ !
Peedaa kee tees zabardast hai...har shabd me masoos hotee hai..aapkee rachnayen waqayi behad sashakt hoti hain.
दावा बन ह्रदय जलाया अब बन कर जल नयनों से,
जवाब देंहटाएंछल छल कर कथा व्यथा की कह रहे मौन नयनों से !
बहुत ही भावुक और संवेदनशील रचना...
मेरी पीड़ा के सहचर या तो गाथा कह जाओ,
जवाब देंहटाएंया संग में अपने ही तुम उसे बहा ले जाओ
बहुत खुबसूरत रचना ....