संसृति के सब भाव मिटा कर
हो जीवन अभावमय आज,
विगत सुखों के स्वप्न मिटे
आगामी मृदु वैभव का साज !
भाग्य चक्र ने बना दिया जो
क्यों हो उससे क्षोभ सखे,
देख मधुर जीवन औरों का
क्यों हो उसका लोभ सखे !
खण्ड-खण्ड हो बिखर गये
यदि आशा के वे भव्य प्रसाद,
हो बिखरा नैराश्य कुटी में
जीवन का मृदुतम आल्हाद !
स्मृति सरिता इठलाती
कुटिया के प्रांगण में आये,
दिखा नवीन केलि क्रीडा
दुखिया मन को बहला जाये !
नयनों का निर्झर झर-झर कर
प्राणों में अपनत्व भरे,
निश्वासों का मलयानिल
जीवन वन में अमरत्व भरे !
विपदाओं के उमड़-घुमड़
जब घिर आयें बादल अनजान,
तड़ित वेग से चमक उठे तब
प्रिय अधरों की मृदु मुस्कान !
किरण
एक बार फिर उत्कृष्ट काव्य का नमूना। मां जी को नमन!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना ...कष्टों में भी प्रिय की एक मुस्कान उल्लास जगा देती है ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना है यह....ऐसी रचनायें बिरली ही पढने को मिलती हैं....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर इस बार चर्चा है जरूर आएँ...
लानत है ऐसे लोगों पर....
नमन
जवाब देंहटाएंउत्तम शब्दांकन
उम्दा प्रस्तुति
ताज़ा पोस्ट विरहणी का प्रेम गीत
देख मधुर जीवन औरों का
जवाब देंहटाएंक्यों हो उसका लोभ सखे !
waah!
bahut sundar...
kiran ji ki lekhani ko naman!!
सुन्दर मन को छूते भाव लिए रचना पढनी बहुत अच्छी लगी |यह एक बार आकाशवाणी से भी प्रसारित हुई थी |
जवाब देंहटाएंआशा
सुंदर भावो से सजी अति सुंदर ओर अनमोल कविता, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंविपदाओं के उमड़-घुमड़
जवाब देंहटाएंजब घिर आयें बादल अनजान,
तड़ित वेग से चमक उठे तब
प्रिय अधरों की मृदु मुस्कान !
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आपकी माता जी की यह
बहुत ही लाजवाब रचना है!
हर बार ये आँखों को नम कर देती है.
जवाब देंहटाएंकुछ अपनी सी कह जाती है
कुछ दिल के हाल सुनाती है
हमेशा की तरह उत्तम और अपनी सी.
अपनों का साथ अंधकारमय समय को भी एक बारगी उजासमय एवं खूबसूरत बना जाता है. खूबसूरत अहसासों को पिरोती हुई एक सुंदर भावप्रवण रचना. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर
डोरोथी.
स्मृति सरिता इठलाती
जवाब देंहटाएंकुटिया के प्रांगण में आये,
दिखा नवीन केलि क्रीडा
दुखिया मन को बहला जाये !
लाजवाब रचना !
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देख मधुर जीवन औरों का
जवाब देंहटाएंक्यों हो उसका लोभ सखे !
दिल को छू गयी रचना। शुभकामनायें।