शनिवार, 30 अक्टूबर 2010

संसृति के भाव

संसृति के सब भाव मिटा कर
हो जीवन अभावमय आज,
विगत सुखों के स्वप्न मिटे
आगामी मृदु वैभव का साज !

भाग्य चक्र ने बना दिया जो
क्यों हो उससे क्षोभ सखे,
देख मधुर जीवन औरों का
क्यों हो उसका लोभ सखे !

खण्ड-खण्ड हो बिखर गये
यदि आशा के वे भव्य प्रसाद,
हो बिखरा नैराश्य कुटी में
जीवन का मृदुतम आल्हाद !

स्मृति सरिता इठलाती
कुटिया के प्रांगण में आये,
दिखा नवीन केलि क्रीडा
दुखिया मन को बहला जाये !

नयनों का निर्झर झर-झर कर
प्राणों में अपनत्व भरे,
निश्वासों का मलयानिल
जीवन वन में अमरत्व भरे !

विपदाओं के उमड़-घुमड़
जब घिर आयें बादल अनजान,
तड़ित वेग से चमक उठे तब
प्रिय अधरों की मृदु मुस्कान !

किरण

12 टिप्‍पणियां:

  1. एक बार फिर उत्कृष्ट काव्य का नमूना। मां जी को नमन!

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  2. बहुत अच्छी रचना ...कष्टों में भी प्रिय की एक मुस्कान उल्लास जगा देती है ...

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  3. बेहतरीन रचना है यह....ऐसी रचनायें बिरली ही पढने को मिलती हैं....
    मेरे ब्लॉग पर इस बार चर्चा है जरूर आएँ...
    लानत है ऐसे लोगों पर....

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  4. देख मधुर जीवन औरों का
    क्यों हो उसका लोभ सखे !
    waah!
    bahut sundar...
    kiran ji ki lekhani ko naman!!

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  5. सुन्दर मन को छूते भाव लिए रचना पढनी बहुत अच्छी लगी |यह एक बार आकाशवाणी से भी प्रसारित हुई थी |
    आशा

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  6. सुंदर भावो से सजी अति सुंदर ओर अनमोल कविता, धन्यवाद

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  7. विपदाओं के उमड़-घुमड़
    जब घिर आयें बादल अनजान,
    तड़ित वेग से चमक उठे तब
    प्रिय अधरों की मृदु मुस्कान !
    --
    आपकी माता जी की यह
    बहुत ही लाजवाब रचना है!

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  8. हर बार ये आँखों को नम कर देती है.
    कुछ अपनी सी कह जाती है
    कुछ दिल के हाल सुनाती है

    हमेशा की तरह उत्तम और अपनी सी.

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  9. अपनों का साथ अंधकारमय समय को भी एक बारगी उजासमय एवं खूबसूरत बना जाता है. खूबसूरत अहसासों को पिरोती हुई एक सुंदर भावप्रवण रचना. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

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  10. स्मृति सरिता इठलाती
    कुटिया के प्रांगण में आये,
    दिखा नवीन केलि क्रीडा
    दुखिया मन को बहला जाये !

    लाजवाब रचना !

    .

    जवाब देंहटाएं
  11. देख मधुर जीवन औरों का
    क्यों हो उसका लोभ सखे !
    दिल को छू गयी रचना। शुभकामनायें।

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