रविवार, 10 अक्टूबर 2010

साथी राग कौन सा गाऊँ !

साथी राग कौन सा गाऊँ !
बुझती प्रेम वर्तिका में अब कैसे जीवन ज्योति जगाऊँ !
साथी राग कौन सा गाऊँ !

चारों ओर देखती साथी अगम सिंधु दुख का लहराता,
पग-पग शान्ति निरादृत होती,यह जग निष्ठुरता अपनाता,
बोलो तो इस दुखिया मन को क्या कैसे कह कर समझाऊँ !
साथी राग कौन सा गाऊँ !

नित्य जलाती ह्रदय कुञ्ज को चिंता की ज्वाला तिल तिल कर,
जग अपनाता जिसे प्रेम से त्याग रहा उसको पागल उर,
इस उन्मत्त प्रकृति में कैसे बोलो तो प्रिय मैं मिल जाऊँ !
साथी राग कौन सा गाऊँ !

चाह रही हूँ मैं मुसकाना पर यह नैन उमड़ पड़ते हैं,
पुष्प झड़ें उससे पहले ये मोती मुग्ध बरस पड़ते हैं,
बोलो शान्ति देवि की कैसे साथी मैं पूजा कर पाऊँ !
साथी राग कौन सा गाऊँ !

मेरा कवि हँस रहा सखे पर हृदय लुटाता रक्त कटोरे,
चिर निंद्रा है एक ओर औ दूजी ओर प्रेम के डोरे,
कहो न साथी अरे कौन से पथ पर मैं निज पैर बढ़ाऊँ !
साथी राग कौन सा गाऊँ !

देख रहे सब सुख के सपने, मैं दु:खों का भार संजोये,
स्मृति के सागर में विस्मृत मुक्ताओं की माल पिरोये,
स्वागत को द्वारे पर आई, अब कैसे सब साज सजाऊँ !
साथी राग कौन सा गाऊँ !

किरण

16 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीयसाधना वैद जी
    नमस्कार !

    मन की अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति है

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  2. बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति। शुभकामनायें

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  3. बहुत सुंदर भाव और शब्द चयन |समझ में नहीं आता अपनी माँ की कविताओं पर क्या टिप्पणी दूं उनसे ही तो प्रेरणा ली है |
    आशा

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  4. इस रचना की संवेदना और शिल्पगत सौंदर्य मन को भाव विह्वल कर गए हैं। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है!
    या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
    नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!

    मरद उपजाए धान ! तो औरत बड़ी लच्छनमान !!, राजभाषा हिन्दी पर कहानी ऐसे बनी

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  5. अतिसुन्दर भावाव्यक्ति, सुंदर रचना के लिए साधुवाद ,

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  6. देख रहे सब सुख के सपने, मैं दु:खों का भार संजोये,
    स्मृति के सागर में विस्मृत मुक्ताओं की माल पिरोये,
    स्वागत को द्वारे पर आई, अब कैसे सब साज सजाऊँ !
    साथी राग कौन सा गाऊँ !
    पूरी रचना मे मार्मिक संवेदना, और मन का अन्तर्दुअंद बहुत सुन्दर शब्दों से संजोया है। बधाई आपको।

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  7. मैं तो हर रचना पर विस्मृत हो जाती हूँ ...रचना का सौंदर्य अनूठा है ...खूबसूरत प्रस्तुतिकरण ...











    .

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  8. संवेदनाओं को शब्दों में रूपांतरित कर बहुत ही भावप्रवण गीत की रचना की है आपने। इसके भाव और शिल्प को पढ़कर महादेवी वर्मा की रचनाओं की याद आ गई ।

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  9. आज ये कविता पढ़ कर महादेवी वर्मा जी की कविता की दों पंक्तियाँ याद आ रही हैं जो इन भावों से मिलती जुलती हैं..

    दृग पुलिनों पर
    हिम से मृदुतर
    करुणा की लहरों में बहकर
    जो आ जाते मोती, उन बिन,
    नवनिधियोंमय जीवन सूना !
    तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना ।

    आज ये कविता कुछ यूँ भी लगी जैसे मेरे मन के भाव लिख दिए हों.

    शुक्रिया इस हम तक पहुँचाने के लिए.

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  10. बहुत सुन्दर गीत...हमेशा की तरह!

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  11. बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है!
    या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता।
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
    नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  12. देख रहे सब सुख के सपने, मैं दु:खों का भार संजोये,
    स्मृति के सागर में विस्मृत मुक्ताओं की माल पिरोये,
    स्वागत को द्वारे पर आई, अब कैसे सब साज सजाऊँ !
    साथी राग कौन सा गाऊँ !

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    behatreen rachna !

    aabhar .

    .

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  13. ह्रदय वेदना की बेहतरीन अभिव्यक्ति ! शुभकामनायें आपको

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  14. maa ki likhi kavita hamen padhwane ke liye bahot-bahot dhanybad.kitni sunder kavitayen hain.wah.

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  15. क्या आप एक उम्र कैदी का जीवन पढना पसंद करेंगे, यदि हाँ तो नीचे दिए लिंक पर पढ़ सकते है :-
    1- http://umraquaidi.blogspot.com/2010/10/blog-post_10.html
    2- http://umraquaidi.blogspot.com/2010/10/blog-post.html

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