सुना न कवि अब करुणा गान !
वितरित करता है कण-कण में अमर सत्य, वेदना महान्
कवि यह तेरा करुणा गान !
यदि संसृति के वज्र प्रहारों से तेरा उर क्षत-विक्षत है,
फिर भी मन की अस्थिरता क्या नहीं तुझे कुछ भी अवगत है ?
दर्द भरे स्वर से गा गाकर सुना रहे हो किसे कथा यह,
क्रूर कठिन पाषाणों को क्यों दिखा रहे हो व्यर्थ व्यथा यह ?
उर में आग, नयन में जीवन, भर अधरों में मृदु मुस्कान !
सुना रहे क्यों करुणा गान !
पा न सके यदि कृपा सिंधु का एक बिंदु तुम निष्ठुर जग से,
पर कवि मनु के अमर पुत्र क्या हट जाओगे आशा मग से ?
विचलित उर में भाव सजा कर वह प्रलयंकारी राग सुना दो,
व्यथित राष्ट्र के जीवन में फिर विप्लव की ज्वाला सुलगा दो !
परिवर्तित हो अश्रु पूर्ण नयनों में अब वीरत्व महान् !
सुना न कवि यह करुणा गान !
किरण
विचलित उर में भाव सजा कर वह प्रलयंकारी राग सुना दो,
जवाब देंहटाएंव्यथित राष्ट्र के जीवन में फिर विप्लव की ज्वाला सुलगा दो !
सम्पूर्ण आह्वान की रचना ..
सुन्दर
very beautiful poem .A fine piece of writing
जवाब देंहटाएंAsha
सुन्दर कविता!
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर भी पधारें!
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जवाब देंहटाएंविचलित उर में भाव सजा कर वह प्रलयंकारी राग सुना दो,
व्यथित राष्ट्र के जीवन में फिर विप्लव की ज्वाला सुलगा दो !
Quite motivating !
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बहुत ही बढ़िया आह्वान....व्यथित मन के भाव सुन्दरता से मुखरित हुए हैं.
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna..prernadaayak
जवाब देंहटाएंआज आपकी कविता पूरी नहीं पढ़ पा रही क्युकी अश्क प्रवाह पढ़ने नहीं देगा इसे पूरी.
जवाब देंहटाएंव्यथित राष्ट्र के जीवन में फिर विप्लव की ज्वाला सुलगा दो !
जवाब देंहटाएंओजस्वी तेजोमय अहवान करती कविता ...
आभार ...!
एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब
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