गुरुवार, 21 अक्टूबर 2010

कवि से

सुना न कवि अब करुणा गान !
वितरित करता है कण-कण में अमर सत्य, वेदना महान्
कवि यह तेरा करुणा गान !

यदि संसृति के वज्र प्रहारों से तेरा उर क्षत-विक्षत है,
फिर भी मन की अस्थिरता क्या नहीं तुझे कुछ भी अवगत है ?
दर्द भरे स्वर से गा गाकर सुना रहे हो किसे कथा यह,
क्रूर कठिन पाषाणों को क्यों दिखा रहे हो व्यर्थ व्यथा यह ?
उर में आग, नयन में जीवन, भर अधरों में मृदु मुस्कान !
सुना रहे क्यों करुणा गान !

पा न सके यदि कृपा सिंधु का एक बिंदु तुम निष्ठुर जग से,
पर कवि मनु के अमर पुत्र क्या हट जाओगे आशा मग से ?
विचलित उर में भाव सजा कर वह प्रलयंकारी राग सुना दो,
व्यथित राष्ट्र के जीवन में फिर विप्लव की ज्वाला सुलगा दो !
परिवर्तित हो अश्रु पूर्ण नयनों में अब वीरत्व महान् !
सुना न कवि यह करुणा गान !

किरण

9 टिप्‍पणियां:

  1. विचलित उर में भाव सजा कर वह प्रलयंकारी राग सुना दो,
    व्यथित राष्ट्र के जीवन में फिर विप्लव की ज्वाला सुलगा दो !
    सम्पूर्ण आह्वान की रचना ..
    सुन्दर

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  2. .

    विचलित उर में भाव सजा कर वह प्रलयंकारी राग सुना दो,
    व्यथित राष्ट्र के जीवन में फिर विप्लव की ज्वाला सुलगा दो !

    Quite motivating !

    .

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  3. बहुत ही बढ़िया आह्वान....व्यथित मन के भाव सुन्दरता से मुखरित हुए हैं.

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  4. आज आपकी कविता पूरी नहीं पढ़ पा रही क्युकी अश्क प्रवाह पढ़ने नहीं देगा इसे पूरी.

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  5. व्यथित राष्ट्र के जीवन में फिर विप्लव की ज्वाला सुलगा दो !
    ओजस्वी तेजोमय अहवान करती कविता ...
    आभार ...!

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