बुधवार, 27 अक्टूबर 2010

हृदय का ज्वार

व्यर्थ हृदय में ज्वार उमड़ता
व्यर्थ नयन भर-भर आते हैं,
पागल तुझको देख सिसकता
पत्थर दिल मुसका जाते हैं !

युग-युग की प्यासी यह संसृति
पिये करोड़ों आँसू बैठी,
तेरे इन मानस मुक्तों की
कीमत कौन लगा पाते हैं !

यदि अपने अंतरतम के
तू घाव नोंच कर रक्तिम कर ले,
अपने नन्हे से अंतर में
सब दुनिया की पीड़ा भर ले !

तेरे छाले फूट-फूट बह उठें
मर्म टीसें सह-सह कर,
पर जग को क्या परवा तेरी
तू चाहे जो कुछ भी कर ले !

यह जीवन तिल-तिल करके
जल जाएगा ओ पागल प्राणी,
चिता जला देगी इस तन को
रह जायेगी एक कहानी !

अरे कौन तेरी गाथा को
कहे सुनेगा कौन है तेरा,
इस निष्ठुर जग ने अब तक है
कब किसकी पीड़ा पहचानी !

तूने समझा जिन्हें फूल है
वे हैं तीक्ष्ण शूल अभिमानी,
स्वार्थपूर्ण संसार यहाँ पर
सब करते रहते मनमानी !

मान व्यर्थ है कौन मनाने
आएगा तेरा रूठा मन,
व्यर्थ हृदय का रक्त लुटाता
बना नयन निर्झर का पानी !

जग तो सोता शान्ति सेज पर
तू क्यों बिलख-बिलख कर रोता,
नयनों के सागर से स्मृतियों
के चित्र पटल क्यों धोता !

प्राणों की पीड़ा झर-झर कर
व्यर्थ लुटाती अपना जीवन,
हृदय कृषक क्यों निर्ममता की
धरती पर यह मुक्ता बोता !

सखे निर्ममों का यह मेला
यहाँ न स्वप्नों का कुछ मोल,
तेरी आहों, निश्वासों और
आँसू का है क्या कुछ तोल !

आओ क्षण भर इनके संग मिल
हम भी अपना साज बजायें,
यह क्षण भंगुर जीवन साथी
नहीं तनिक भी है अनमोल !


किरण

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत गहरे भाव लिये हे आप की यह कविता, धन्यवाद

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  2. प्राणों की पीड़ा झर-झर कर
    व्यर्थ लुटाती अपना जीवन,
    हृदय कृषक क्यों निर्ममता की
    धरती पर यह मुक्ता बोता !

    Bhut sunder.... gahre manobhavon ki prastuti

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  3. "जग तो सोता शांत सेज पर,
    तू क्यूँ बिलख बिलख रोता ,
    बहुत सुंदर भाव लिए प्रस्तुति |
    आशा

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  4. बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति... पता नहीं इतनी अच्छी कवितायेँ कभी लिख पाउँगा या नहीं..

    मेरे ब्लॉग पर इस बार

    उदास हैं हम ....

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  5. प्राणों की पीड़ा झर-झर कर
    व्यर्थ लुटाती अपना जीवन,
    हृदय कृषक क्यों निर्ममता की
    धरती पर यह मुक्ता बोता !
    बिलकुल सोचने पर मजबूर करती पँक्तियाँ
    आओ क्षण भर इनके संग मिल
    हम भी अपना साज बजायें,
    यह क्षण भंगुर जीवन साथी
    नहीं तनिक भी है अनमोल !
    सार्थक सन्देश। आपकी कविता हमेशा ही उमदा होती है और क्या कहूँ। एक एक शब्द दिल तक जाता है। शुभकामनायें।

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  6. जीवन के शाश्वत सत्य को बताती खूबसूरत रचना ...जीवन तो क्षणभंगुर ही है ..

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  7. बहुत गहन सत्य को इतने प्रभावी और सटीक तरह प्रस्तुत किया..बधाई..

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  8. सखे निर्ममों का यह मेला
    यहाँ न स्वप्नों का कुछ मोल,
    तेरी आहों, निश्वासों और
    आँसू का है क्या कुछ तोल

    bahut gehri soch aur dukh ko abhivyakt karti huvi yah kavita bahut pathak ke dil me un bhavo ko paida karne me saksham hai .. kal chachamanch par aapki kavita hogi.. aapka abhaar

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  9. विपत्तियों को सहने का बल केवल ईश्‍वर की याद से ही मिलता है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
    विचार-नाकमयाबी

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  10. आदरणीय किरण जी की इतनी यह रचना जीवन का गूढ़ सत्य और गहन भावनाएँ बयान करने वाली एक अनुपम कृति है .....व्यथित मन का उद्दगार बहुत प्रभावशाली ठंग से प्रस्तुत किया गया है .
    इसे हम सभी को पाठन हेतु उपलब्ध कराने के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद !

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  11. ओह...अद्वितीय कविता !!!

    मन आनंदित हो गया पढ़कर...

    क्या भाव हैं,क्या शब्द योजना है और क्या रचना प्रवाह है...बस मुग्ध भाव से पढ़ती चली गयी..

    इस अनुपम लेखनी को नमन !!!

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