देव सुन कर क्या करोगे दुखी जीवन की कहानी !
यह अभावों की लपट में जल चुका जो वह नगर है,
बेकसी ने जिसे घेरा, हाय यह वह भग्न घर है !
लुट चुका विश्वास जिसका, तड़पती आशा बिचारी,
नयन के श्रृंगार मुक्ता बन चुके अब नीर खारी !
यह न आँसू की लड़ी, है ज्वलित मानव की निशानी,
दग्ध अंतर की चिता पर झुलसती तृष्णा विरानी !
देव सुन कर क्या करोगे दुखी जीवन की कहानी !
खा चुका जो ठोकरें, अगणित सही हैं लांछनाएं,
पर न कर पाया सुफल कुछ भी रही जो वांछनाएं !
बढ़ रही प्रतिपल विरोधों की लपट नित ज्वाल बन कर,
मिट रहा वह जो कभी लाया यहाँ अमरत्व चुन कर !
मनुज को छलती रही है आदि से अभिलाष मानी,
लुट रही करुणा न पिघले पर कभी पाषाण प्राणी !
देव सुन कर क्या करोगे दुखी जीवन की कहानी !
किरण
बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंबहुत ही ख़ूबसूरत रचना...सच में इतनी बातें हैं सुन कर क्या करोगे...
जवाब देंहटाएंआपको दशहरा की ढेर सारी बधाई....
मेरे ब्लॉग में इस बार...ऐसा क्यूँ मेरे मन में आता है....
दर्द अभिव्यक्ति पर बहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत, आत्माभिव्यक्ति। कवयित्री को नमन! बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोsस्तु ते॥
महानवमी के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
चिठियाना-टिपियाना संवाद
bahut sundar !!!
जवाब देंहटाएंkavyatri ko saadar naman!
बहुत ही भावुक रचना..बहुत सुन्दर..बधाई
जवाब देंहटाएंA beautiful post with unique thought .Sadhana I am very happy that you have done a great job.
जवाब देंहटाएंAsha
भावुकता लिये आप की यह रचना, धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंदशहरा की हार्दिक बधाई ओर शुभकामनाएँ!!!!
जब भी आपकी माँ जी की कवितायें पढ़ती हूँ तो हर बार ऐसा लगता है मानो मेरे मन के एहसास उकेर कर लिख दिए हों...तो आप समझ सकती हैं कितनी अपनी सी, कितनी प्रिय सी लगती हैं मुझे ये रचनाये.
जवाब देंहटाएंआपका बहुत धन्यवाद जो ऐसा अनमोल खजाना हमारे आगे पेश कर पा रही हैं आप.
bahut sundar abhivyakti...abhi main out of station hun ..niyamit nahi rah paungi
जवाब देंहटाएंमनुज को छलती रही है आदि से अभिलाष मानी,
जवाब देंहटाएंलुट रही करुणा न पिघले पर कभी पाषाण प्राणी !
करुण रस में भीगी कविता...अंतस को भीतर तक आप्लावित कर गयी.