देव सुन कर क्या करोगे दुखी जीवन की कहानी !
यह अभावों की लपट में जल चुका जो वह नगर है,
बेकसी ने जिसे घेरा, हाय यह वह भग्न घर है,
लुट चुका विश्वास जिसका, तड़पती आशा बेचारी,
नयन के श्रृंगार मुक्ता बन चुके अब नीर खारी !
खा चुका जो ठोकरें, अगणित सही हैं लांछनायें,
पर न कर पाया सुफल कुछ भी रहीं जो वांछनायें,
बढ़ रही प्रतिपल विरोधों की लपट नित ज्वाल बन कर,
मिट रहा वह जो कभी लाया यहाँ अमरत्व चुन कर !
मनुज को छलती रही है आदि से अभिलाष मानी,
लुट रही करुणा न पिघले पर कभी पाषाण प्राणी,
यह न आँसू की लड़ी है ज्वलित मानव की निशानी,
देव सुन कर क्या करोगे दुखी जीवन की कहानी !
किरण
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा!
जवाब देंहटाएंबहुत गंभीर मन को छूती रचना |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंदेव , सुन कर क्या करोगे ...
जवाब देंहटाएंनहीं कहते हुए भी कहती हुई अच्छी रचना ..!
मन की व्यथा को बहुत ही मार्मिक शब्दों में व्यक्त किया है
जवाब देंहटाएंबेहद संवेदनशील रचना
साधना जी मन की व्यथा को जितनी अनुभूति और दर्द से उसके सामने कहा जा सकता है शायद और किसी के नही। दिल को छू गयी रचना। कृप्या मेरे इस ब्लाग को भी देखें ।
जवाब देंहटाएंhttp://veeranchalgatha.blogspot.com/
धन्यवाद।
लुट रही करुणा न पिघले पर कभी पाषाण प्राणी,
जवाब देंहटाएंयह न आँसू की लड़ी है ज्वलित मानव की निशानी,
देव सुन कर क्या करोगे दुखी जीवन की कहानी
एक एक शब्द करुणा में भीगा हुआ ....सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत ही खुबसूरत रचना...
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर मेरी नयी कविता संघर्ष
गंभीर मनोभावों वाली सुंदर रचना..... बहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहद मार्मिक रचना जो मन से एक आह निकाल देने को मजबूर करती है.
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