शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2010

* अमर बापू *

पाठकों से विनम्र निवेदन है कि इस कविता का रचनाकाल पचास के दशक का है ! वे इस तथ्य के साथ इस रचना का रसास्वादन करें ! यह श्रद्धांजलि मेरी माँ 'किरण' जी के द्वारा श्रद्धेय बापू को ! 

२ अक्टूबर पर विशिष्ट भेंट ! 

बापू तुमने बाग लगाया, खिले फूल मतवारे थे,

इन फूलों ने निज गौरव पर तन मन धन सब वारे थे !

बापू तुमने पंथ दिखाया, चले देश के लाल सुघर,

जिनकी धमक पैर की सुन कर महाकाल भी भागा डर !

बापू तुमने ज्योति जला दी देश प्रेम की मतवाली,

हँस कर जिस पर जान लुटा दी कोटि शलभ ने मतवाली !

बापू तुमने बीन बजाई मणिधर सोये जाग गए,

सुन फुंकार निराली जिनकी बैरी भी सब भाग गए !

बापू तुमने गीता गाई, फिर अर्जुन से चेते वीर,

हुआ देश आज़ाद, मिटी युग-युग की माँ के मन की पीर !

आ जाओ, ओ बापू, फिर से भारत तुम्हें बुलाता है,

नवजीवन संचार करो, यह मन की भीति भुलाता है !

अभी तुम्हारे जैसे त्यागी की भारत में कमी बड़ी,

आओ बापू, फिर से जोड़ो सत्य त्याग की सुघर कड़ी !

 

किरण

 

10 टिप्‍पणियां:

  1. bahut hi khubsurat shradhanjli hai hamare bapu ko....
    kal subah 11 baje meri bhi ek rachna mere blog par hogi, jaroor aayein....

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  2. बापू तुमने बीन बजाई मणिधर सोये जाग गए,

    सुन फुंकार निराली जिनकी बैरी भी सब भाग गए !


    बेहद सुन्दर रचना लिखी है मां ने .मै उन्हें नमन करता हूँ .

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  3. बहुत सुंदरता से भावों को समेटा है ...अच्छी रचना ...

    कुछ इन्हीं भावों को समेटे मैंने भी कभी कुछ लिखा था ..

    आज आप यहाँ पढ़ सकते हैं ..
    http://raj-bhasha-hindi.blogspot.com/2010/10/blog-post_02.html

    इस रचना का रचनाकाल सत्तर के दशक का है :):)
    बस यही सोचती हूँ कि इतने वर्ष गुज़रते जा रहे हैं स्थितियां बद से बदत्तर होती जा रही हैं ..

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  4. बहुत ही सुन्दर कविता....
    बापू को शत-शत नमन

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  5. श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना "किरण" जी की
    सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए आभार!
    ---
    दो अक्टूबर को जन्मे,
    दो भारत भाग्य विधाता।
    लालबहादुर-गांधी जी से,
    था जन-गण का नाता।।
    इनके चरणों में श्रद्धा से,
    मेरा मस्तक झुक जाता।।

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  6. बेहद सुन्दर रचना लिखी है मां ने .मै उन्हें नमन करता हूँ .

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  7. गाँधी-जयंती पर सुन्दर प्रस्तुति....गाँधी बाबा की जय हो.

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  8. गांधी जी को मेरा नमन,
    लाल बहादुर को श्रद्धा सुमन!
    आशीष
    --
    प्रायश्चित

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  9. कविता तो काल के अनुसार ही लिखी जा सकती हें| यह जब लिखी गई थी उस समय को यदि ध्यान में रखे तब ही रचनाओं का आनंद उठाया जा सकता है |लेखन शैली बहुत मन को छूने वाली है |एक एक पंक्ति मन को छू जाती है |
    आशा

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