पाठकों से विनम्र निवेदन है कि इस कविता का रचनाकाल पचास के दशक का है ! वे इस तथ्य के साथ इस रचना का रसास्वादन करें ! यह श्रद्धांजलि मेरी माँ 'किरण' जी के द्वारा श्रद्धेय बापू को !
२ अक्टूबर पर विशिष्ट भेंट !
बापू तुमने बाग लगाया, खिले फूल मतवारे थे,
इन फूलों ने निज गौरव पर तन मन धन सब वारे थे !
बापू तुमने पंथ दिखाया, चले देश के लाल सुघर,
जिनकी धमक पैर की सुन कर महाकाल भी भागा डर !
बापू तुमने ज्योति जला दी देश प्रेम की मतवाली,
हँस कर जिस पर जान लुटा दी कोटि शलभ ने मतवाली !
बापू तुमने बीन बजाई मणिधर सोये जाग गए,
सुन फुंकार निराली जिनकी बैरी भी सब भाग गए !
बापू तुमने गीता गाई, फिर अर्जुन से चेते वीर,
हुआ देश आज़ाद, मिटी युग-युग की माँ के मन की पीर !
आ जाओ, ओ बापू, फिर से भारत तुम्हें बुलाता है,
नवजीवन संचार करो, यह मन की भीति भुलाता है !
अभी तुम्हारे जैसे त्यागी की भारत में कमी बड़ी,
आओ बापू, फिर से जोड़ो सत्य त्याग की सुघर कड़ी !
किरण
bahut hi khubsurat shradhanjli hai hamare bapu ko....
जवाब देंहटाएंkal subah 11 baje meri bhi ek rachna mere blog par hogi, jaroor aayein....
बापू गाँधी को नमन !
जवाब देंहटाएंबापू तुमने बीन बजाई मणिधर सोये जाग गए,
जवाब देंहटाएंसुन फुंकार निराली जिनकी बैरी भी सब भाग गए !
बेहद सुन्दर रचना लिखी है मां ने .मै उन्हें नमन करता हूँ .
बहुत सुंदरता से भावों को समेटा है ...अच्छी रचना ...
जवाब देंहटाएंकुछ इन्हीं भावों को समेटे मैंने भी कभी कुछ लिखा था ..
आज आप यहाँ पढ़ सकते हैं ..
http://raj-bhasha-hindi.blogspot.com/2010/10/blog-post_02.html
इस रचना का रचनाकाल सत्तर के दशक का है :):)
बस यही सोचती हूँ कि इतने वर्ष गुज़रते जा रहे हैं स्थितियां बद से बदत्तर होती जा रही हैं ..
बहुत ही सुन्दर कविता....
जवाब देंहटाएंबापू को शत-शत नमन
श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना "किरण" जी की
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना पढ़वाने के लिए आभार!
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दो अक्टूबर को जन्मे,
दो भारत भाग्य विधाता।
लालबहादुर-गांधी जी से,
था जन-गण का नाता।।
इनके चरणों में श्रद्धा से,
मेरा मस्तक झुक जाता।।
बेहद सुन्दर रचना लिखी है मां ने .मै उन्हें नमन करता हूँ .
जवाब देंहटाएंगाँधी-जयंती पर सुन्दर प्रस्तुति....गाँधी बाबा की जय हो.
जवाब देंहटाएंगांधी जी को मेरा नमन,
जवाब देंहटाएंलाल बहादुर को श्रद्धा सुमन!
आशीष
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प्रायश्चित
कविता तो काल के अनुसार ही लिखी जा सकती हें| यह जब लिखी गई थी उस समय को यदि ध्यान में रखे तब ही रचनाओं का आनंद उठाया जा सकता है |लेखन शैली बहुत मन को छूने वाली है |एक एक पंक्ति मन को छू जाती है |
जवाब देंहटाएंआशा