पंथ का कर व्यर्थ अर्चन हार बैठी आज मैं सखी !
प्राण वीणा में निरंतर
करूण स्वर मैं साधती थी ,
उड़ सकूँगी क्यों न मैं भी
सोच साहस बाँधती थी ,
व्यर्थ थी वह साधना औ व्यर्थ यह साहस रहा सखी !
पंथ का कर व्यर्थ अर्चन हार बैठी आज मैं सखी !
डगमगाती तरिणी ने
मँझधार भी न देख पाया ,
क्रूर झंझावात ने
पतवार बन उसको बढ़ाया,
खो गयीं सारी दिशायें, तिमिर में ही बढ़ रही सखी !
पंथ का कर व्यर्थ अर्चन हार बैठी आज मैं सखी !
उषा हँसती, किरण जगती
ज्योति से जग जगमगाता ,
क्षितिज तट का शून्य अंतर
पर न कोई मिटा पाता ,
है क्षणिक द्युति, शून्य शाश्वत, जान पाई आज मैं सखी !
पंथ का कर व्यर्थ अर्चन हार बैठी आज मैं सखी !
किरण
निराशा के पलों मे मन की व्यथा को शब्द दे कर मन को ढाढ्स देने का अच्छा प्रयास है कागज़ ही तो सुनते हैं मन की व्यथा।
जवाब देंहटाएंडगमगाती तरिणी ने
मँझधार भी न देख पाया ,
क्रूर झंझावात ने
पतवार बन उसको बढ़ाया,
खो गयीं सारी दिशायें, तिमिर में ही बढ़ रही सखी !
पंथ का कर व्यर्थ अर्चन हार बैठी आज मैं सखी !
बहुत अच्छी लगी आपकी रचना। शुभकामनायें
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंकाव्य प्रयोजन (भाग-१०), मार्क्सवादी चिंतन, मनोज कुमार की प्रस्तुति, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें
bahut achhi rachna lagi mujhe ....
जवाब देंहटाएंyun hi likhte rahein...
डगमगाती तरिणी ने
जवाब देंहटाएंमँझधार भी न देख पाया ,
क्रूर झंझावात ने
पतवार बन उसको बढ़ाया,
खो गयीं सारी दिशायें, तिमिर में ही बढ़ रही सखी !
पंथ का कर व्यर्थ अर्चन हार बैठी आज मैं सखी !
nihshabd hun...
बहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंbahut khoobsurt
जवाब देंहटाएंmahnat safal hui
yu hi likhate raho tumhe padhana acha lagata hai.
डगमगाती तरिणी ने
जवाब देंहटाएंमँझधार भी न देख पाया ,
क्रूर झंझावात ने
पतवार बन उसको बढ़ाया,
खो गयीं सारी दिशायें, तिमिर में ही बढ़ रही सखी ...
इस धारा प्रवाह ... शब्द संयोजन ने स्तब्ध कर दिया .... बहुत ही सुंदर रचना ...
आज की यह रचना ऐसा लग रहा है कि मेरे भावों को खूबसूरत शब्द मिल गए हैं ...जो भाव यहाँ लिखे गए हैं वही मेरे मन में घटित हो रहे हैं ...इसी लिए यह रचना मुझसे एकात्म होती सी जान पड़ रही है ..
जवाब देंहटाएंहै क्षणिक द्युति, शून्य शाश्वत, जान पाई आज मैं सखी !
पंथ का कर व्यर्थ अर्चन हार बैठी आज मैं सखी !
बस यही महसूस हो रहा है ..
आभार इतनी सुन्दर रचना पढवाने के लिए
डगमगाती तरिणी ने
जवाब देंहटाएंमँझधार भी न देख पाया ,
क्रूर झंझावात ने
पतवार बन उसको बढ़ाया,
खो गयीं सारी दिशायें, तिमिर में ही बढ़ रही सखी !
पंथ का कर व्यर्थ अर्चन हार बैठी आज मैं सखी !
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बहुत सुन्दर!
बहुत सुन्दर प्रवाहमयी..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो प्रशंग्सनीय है! बधाई!
जवाब देंहटाएंमन की कोमल भावनाओं को सुंदर शब्दों में प्रस्फुटित करती मनोहारी रचना...बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर रचना जी,धन्यवाद
जवाब देंहटाएंशब्द संयोजन ने स्तब्ध कर दिया .... बहुत ही सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत अदभुद |सुंदर भाव |
जवाब देंहटाएंआशा
आप की रचना 01 अक्टूबर, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपनी टिप्पणियाँ और सुझाव देकर हमें अनुगृहीत करें.
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
डगमगाती तरिणी ने
जवाब देंहटाएंमँझधार भी न देख पाया ,
क्रूर झंझावात ने
पतवार बन उसको बढ़ाया,
मानवीकरण का यह अन्दाज और बिम्ब संयोजन अद्भुत
Seems as if u read my heart n wrote it after dippin ur pen into the ink of my pain... n dat too very beautifully...
जवाब देंहटाएंविलक्षण!
जवाब देंहटाएंआशीष
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प्रायश्चित