आज आपको माँ की एक और विशिष्ट रचना पढ़वाने जा रही हूँ जो आश्चर्यजनक रूप से आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी शायद तब होगी जब वर्षों पहले माँ ने इसकी रचना की होगी !
कई वर्ष बीते आज़ादी को, लो देश बधाई लो ,
मेरे देश बधाई लो, प्यारे देश बधाई लो !
तुमने बहुत आपदा झेलीं, सहे बहुत तुमने आघात ,
अंग भंग हो गये तुम्हारे, हुए कष्टकारी उत्पात ,
क्षीण कलेवर, दुखियारे मन, बिखरे केश बधाई लो !
मेरे देश बधाई लो, प्यारे देश बधाई लो !
लुटे कोष, सूने घर, उजड़े खेत, जमी जीवन पर धूल ,
बिना चढ़े ही मुरझाये अनखिले देव प्रतिमा पर फूल ,
औरों की करुणा पर आश्रित ओ दरवेश बधाई लो !
मेरे देश बधाई लो, प्यारे देश बधाई लो !
तूने जिन्हें रत्न माना था वे शीशे के नग निकले ,
अधिकारों की मंज़िल पाने बँधे हुए जन पग निकले ,
स्वार्थ पंक से मज्जित चर्चित उजले वेश बधाई लो !
मेरे देश बधाई लो, प्यारे देश बधाई लो !
कितने रावण, कुम्भकर्ण हैं, कितने क्रूर कंस हैं आज ,
हैं कितने जयचंद, विभीषण बेच रहे जो घर की लाज ,
राम, कृष्ण, गौतम की करुणा के अवशेष बधाई लो !
मेरे देश बधाई लो, प्यारे देश बधाई लो !
तलवारों में जंग लगी है, है कुण्ठित कृपाण की धार ,
सिंह सुतों की जननी सिसकी भर रोती है ज़ारोंज़ार ,
लुटी हुई पांचाली के हारे आवेश बधाई लो !
मेरे देश बधाई लो, प्यारे देश बधाई लो !
किरण
उत्कृष्ट रचना ...सच में इस रचना की हर पंक्ति के भाव आज भी प्रासंगिक हैं....
जवाब देंहटाएंbhut hi bhavpur rachna...
जवाब देंहटाएंलुटे कोष, सूने घर, उजड़े खेत, जमी जीवन पर धूल ,
जवाब देंहटाएंबिना चढ़े ही मुरझाये अनखिले देव प्रतिमा पर फूल ,
औरों की करुणा पर आश्रित ओ दरवेश बधाई लो !
मेरे देश बधाई लो, प्यारे देश बधाई लो !
ati uttam .. bhavpoorn ...hridaysparshi rachna ..
कितने रावण, कुम्भकर्ण हैं, कितने क्रूर कंस हैं आज ,
जवाब देंहटाएंहैं कितने जयचंद, विभीषण बेच रहे जो घर की लाज ,
राम, कृष्ण, गौतम की करुणा के अवशेष बधाई लो !
मेरे देश बधाई लो, प्यारे देश बधाई लो !
आज भी यह रचना उतनी ही प्रासंगिक है ..बहुत अच्छी प्रस्तुति
बेह्द उम्दा और प्रासंगिक रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण एवं संवेदनशील रचना |
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना लेखनी प्रशंसनीय ....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत प्रासंगिक सुंदर अभिव्यक्ति |
जवाब देंहटाएंआशा
अति सुन्दर अभिव्यक्ति !! धन्यवाद
जवाब देंहटाएंतलवारों में जंग लगी है, है कुण्ठित कृपाण की धार ,
जवाब देंहटाएंसिंह सुतों की जननी सिसकी भर रोती है ज़ारोंज़ार ,
लुटी हुई पांचाली के हारे आवेश बधाई लो !
मेरे देश बधाई लो, प्यारे देश बधाई लो !
बहुत सुंदर रचना,
- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
क्षीण कलेवर, दुखियारे मन, बिखरे केश बधाई लो !
जवाब देंहटाएंमेरे देश बधाई लो, प्यारे देश बधाई लो !
कविता में व्यंग्य की धार उभर आई है....
बहुत ही उत्कृष्ट रचना
लुटी हुई पांचाली के हारे आवेश बधाई लो !
जवाब देंहटाएंमेरे देश बधाई लो, प्यारे देश बधाई लो ...
सटीक ... यथार्थ है आज का ये रचना .... लाजवाब ...
बिल्कुल सही कहा आपने ...सार्थक प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंक्या कहने.. वाकई बहुत बढिया
जवाब देंहटाएंप्रासंगिक सुंदर अभिव्यक्ति |बिल्कुल सही कहा आपने ...
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