शुक्रवार, 27 मई 2011

बधाई लो

आज आपको माँ की एक और विशिष्ट रचना पढ़वाने जा रही हूँ जो आश्चर्यजनक रूप से आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी शायद तब होगी जब वर्षों पहले माँ ने इसकी रचना की होगी !

कई वर्ष बीते आज़ादी को, लो देश बधाई लो ,
मेरे देश बधाई लो, प्यारे देश बधाई लो !

तुमने बहुत आपदा झेलीं, सहे बहुत तुमने आघात ,
अंग भंग हो गये तुम्हारे, हुए कष्टकारी उत्पात ,
क्षीण कलेवर, दुखियारे मन, बिखरे केश बधाई लो !
मेरे देश बधाई लो, प्यारे देश बधाई लो !

लुटे कोष, सूने घर, उजड़े खेत, जमी जीवन पर धूल ,
बिना चढ़े ही मुरझाये अनखिले देव प्रतिमा पर फूल ,
औरों की करुणा पर आश्रित ओ दरवेश बधाई लो !
मेरे देश बधाई लो, प्यारे देश बधाई लो !

तूने जिन्हें रत्न माना था वे शीशे के नग निकले ,
अधिकारों की मंज़िल पाने बँधे हुए जन पग निकले ,
स्वार्थ पंक से मज्जित चर्चित उजले वेश बधाई लो !
मेरे देश बधाई लो, प्यारे देश बधाई लो !

कितने रावण, कुम्भकर्ण हैं, कितने क्रूर कंस हैं आज ,
हैं कितने जयचंद, विभीषण बेच रहे जो घर की लाज ,
राम, कृष्ण, गौतम की करुणा के अवशेष बधाई लो !
मेरे देश बधाई लो, प्यारे देश बधाई लो !

तलवारों में जंग लगी है, है कुण्ठित कृपाण की धार ,
सिंह सुतों की जननी सिसकी भर रोती है ज़ारोंज़ार ,
लुटी हुई पांचाली के हारे आवेश बधाई लो !
मेरे देश बधाई लो, प्यारे देश बधाई लो !


किरण

17 टिप्‍पणियां:

  1. उत्कृष्ट रचना ...सच में इस रचना की हर पंक्ति के भाव आज भी प्रासंगिक हैं....

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  2. लुटे कोष, सूने घर, उजड़े खेत, जमी जीवन पर धूल ,
    बिना चढ़े ही मुरझाये अनखिले देव प्रतिमा पर फूल ,
    औरों की करुणा पर आश्रित ओ दरवेश बधाई लो !
    मेरे देश बधाई लो, प्यारे देश बधाई लो !

    ati uttam .. bhavpoorn ...hridaysparshi rachna ..

    जवाब देंहटाएं
  3. कितने रावण, कुम्भकर्ण हैं, कितने क्रूर कंस हैं आज ,
    हैं कितने जयचंद, विभीषण बेच रहे जो घर की लाज ,
    राम, कृष्ण, गौतम की करुणा के अवशेष बधाई लो !
    मेरे देश बधाई लो, प्यारे देश बधाई लो !

    आज भी यह रचना उतनी ही प्रासंगिक है ..बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  4. बेह्द उम्दा और प्रासंगिक रचना।

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  5. बहुत भावपूर्ण एवं संवेदनशील रचना |

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  6. सुन्दर रचना लेखनी प्रशंसनीय ....

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  7. बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  8. बहुत प्रासंगिक सुंदर अभिव्यक्ति |
    आशा

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  9. अति सुन्दर अभिव्यक्ति !! धन्यवाद

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  10. तलवारों में जंग लगी है, है कुण्ठित कृपाण की धार ,
    सिंह सुतों की जननी सिसकी भर रोती है ज़ारोंज़ार ,
    लुटी हुई पांचाली के हारे आवेश बधाई लो !
    मेरे देश बधाई लो, प्यारे देश बधाई लो !

    बहुत सुंदर रचना,
    - विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  11. क्षीण कलेवर, दुखियारे मन, बिखरे केश बधाई लो !
    मेरे देश बधाई लो, प्यारे देश बधाई लो !
    कविता में व्यंग्य की धार उभर आई है....
    बहुत ही उत्कृष्ट रचना

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  12. लुटी हुई पांचाली के हारे आवेश बधाई लो !
    मेरे देश बधाई लो, प्यारे देश बधाई लो ...

    सटीक ... यथार्थ है आज का ये रचना .... लाजवाब ...

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  13. बिल्‍कुल सही कहा आपने ...सार्थक प्रस्‍तुति ।

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  14. एक उम्दा और भावपूर्ण रचना.. पढ़ कर अच्छा लगा !
    मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है : Blind Devotion - अज्ञान

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  15. प्रासंगिक सुंदर अभिव्यक्ति |बिल्‍कुल सही कहा आपने ...

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