सोमवार, 16 मई 2011

भिखारिणी



फटी साड़ी में लिपटी मौन
नयन भर करुणा रस का भार ,
आज यह खड़ी द्वार पर कौन
सरलता सुषमा सी साकार !

अनावृत आधे-आधे पैर
शीश के केश पीठ, कुछ हाथ ,
छिपाये तन को किसी प्रकार
शील और लज्जा के वे साथ !

अंक में सुन्दर सा वह बाल
किसीकी आशा सा सुकुमार ,
सो रहा सुख निद्रा में मौन
दीन माँ का प्यारा आधार !

शून्य दृष्टि से चारों ओर
देखती ठिठक भयानक मौन ,
निरखती फिर-फिर अपना लाल
खड़ी है ममता सी यह कौन !

फटे आँचल को तनिक पसार
बढ़ा कर अपना दुर्बल हाथ ,
शीश तक ले जाती फिर उसे
और कुछ कहती मुख के साथ !

भिखारिन है यह अबला दीन
मनुज की बर्बरता की मूर्ति ,
बहा नयनों से निर्मल नीर
कर रही करुणा रस की पूर्ति !


किरण

15 टिप्‍पणियां:

  1. भिखारिणी का सजीव चित्रण ...बहुत मार्मिक प्रस्तुति

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  2. गहन अवलोकन के वाद उकेरा गया चित्र |भावपूर्ण अभिव्यक्ति |
    आशा
    |

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  3. एक भिखारिन की अवस्था का सजीव चित्रण कर दिया।

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  4. एक भिखारिन की दीन-हीन छवि आँखों के आगे साकार हो उठी...
    बहुत ही मार्मिक कविता

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  5. अक्षरश: सत्‍य लिखा है ... ।

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  6. मानवीय भावों से परिपूर्ण , मर्मश्पर्सी , छंदबद्ध-लयबद्ध सुन्दर रचना...
    लेखनी प्रशंसनीय ....

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  7. फटे आँचल को तनिक पसार
    बढ़ा कर अपना दुर्बल हाथ ,
    शीश तक ले जाती फिर उसे
    और कुछ कहती मुख के साथ !

    सजीव ,मार्मिक चित्रण

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  8. एक मार्मिक रचना, आंखे भीग गई, धन्यवाद

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  9. शून्य दृष्टि से चारों ओर
    देखती ठिठक भयानक मौन ,
    निरखती फिर-फिर अपना लाल
    खड़ी है ममता सी यह कौन !

    ममता का कोई प्रकार नहीं होता। ममता की कोई श्रेणी नहीं होती, चाहे वह रानी की ममता हो या भिखारिणी की।
    कविता मर्मस्पर्शी है।

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  10. एक अच्छी प्रस्तुति ...आभार आपका !

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  11. सजीव चित्रण । मर्मस्पर्शी अच्छी रचना ।

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  12. मार्मिक प्रस्तुति....

    भावपूर्ण अभिव्यक्ति !!

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  13. सत्‍य लिखा है.... अच्छी प्रस्तुति

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  14. भिखारिणी का सजीव चित्रण|अच्छी प्रस्तुति|

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