शुक्रवार, 6 मई 2011

अंतिम विदा

आज आपको अपनी माँ द्वारा रचित अपनी पसंद की सबसे खूबसूरत रचना पढ़वाने जा रही हूँ ! उज्जैन से शाजापुर की यात्रा के दौरान बस में इस रचना ने उनके मन में आकार लिया था ! रास्ते में एक दृश्य ने उन्हें इतना विचलित कर दिया कि उनका संवेदनशील हृदय स्वयं को रोक नहीं पाया और इस रचना का जन्म हुआ ! इस यात्रा में मैं भी उनके साथ थी !

अंतिम विदा

जा रहे प्रिय के नगर को सज गयी बरात राही !

हरे बाँसों पर बिछा तृण वस्त्र है डोली सजाई ,
बाँध कर पंचरंग कलावा पान फूलों से सजाई ,
बंधु बांधव पा निमंत्रण द्वार पर आकर खड़े हैं ,
और तुम सोये पड़े हो, कौन सी यह बात राही !

जा रहे प्रिय के नगर को सज गयी बारात राही !

अंग उबट स्नान करवा भाल पर चन्दन लगाया ,
और नूतन वस्त्र से तव अंग को सबने सजाया ,
पालकी में ला सुलाया रामधुन करने लगे सब ,
और तव परिवार पर तो हुआ उल्कापात राही !

जा रहे प्रिय के नगर को सज गयी बारात राही !

दृश्य यह अंतिम विदा का देख तो लो लौट कर तुम ,
वह उधर माता बिलखती, इधर नारी पड़ी गुमसुम ,
उधर रोकर मचल कर बालक बुला कर हारते हैं ,
कर चले हो किस हृदय से यह कठिन आघात राही !

जा रहे प्रिय के नगर को सज गयी बारात राही !

देख तो लो तुम जहाँ जन्मे वही यह घर तुम्हारा ,
देख तो लो तुम जहाँ खेले वही यह दर तुम्हारा ,
देख लो तुम तड़प जाते जो भरे नैना निरख कर ,
कर रहे अविरल वही तुम पर उमड़ बरसात राही !

जा रहे प्रिय के नगर को सज गयी बारात राही !

एक के ही साथ बँध कर साथ सबका छोड़ भागे ,
सो रहे यों प्रियतमा सँग जो जगाये भी न जागे ,
यह सलोनी कामिनी ऐसी तुम्हारे मन बसी है ,
ध्यान भी इसका न आया दिवस है या रात राही !

जा रहे प्रिय के नगर को सज गयी बारात राही !

जा रहे तुम चार के कन्धों निराली पालकी में ,
जा करोगे अब बसेरा विरस नगरी काल की में ,
अग्नि रथ पर जा चढ़े तुम लपट पथ दर्शक बनी है ,
ज़िंदगी की चाल पर है यह निराली मात राही !

जा रहे प्रिय के नगर को सज गयी बारात राही !

किरण

8 टिप्‍पणियां:

  1. is katu aur abhedy satye ko aaj tak koi moh maya koi behkaava fusla nahi saka. sunder marmik kriti.

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  2. एक दृश्य ..जो जीवन का यथार्थ है ...मौत आनी है ...और मौत के बाद की सारी प्रक्रिया को सुन्दर शब्दों में ऐसा बाँधा है कि पढ़ कर ही नम हो जाती हैं आँखें ... भावमयी रचना

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  3. अंतिम विदा का बहुत सशक्त चित्रण किया है |
    आशा

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  4. ये अंतिम विदाई का दृष्य आँखें नम कर गया। आपकी माता जी की संवेदनशीलता को नमन।
    जा रहे तुम चार के कन्धों निराली पालकी में ,
    जा करोगे अब बसेरा विरस नगरी काल की में ,
    अग्नि रथ पर जा चढ़े तुम लपट पथ दर्शक बनी है ,
    ज़िंदगी की चाल पर है यह निराली मात राही !
    मात निराली है मगर जीवन का सच यही है।

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  5. ह्रदय को छू गया गीत.....

    'मृत्यु ...एक शाश्वत सत्य' को इतने सुन्दर गीत में जीवंत करना ....आँखें नम हो गयीं |

    भाव और शिल्प दोनों से समर्थ ..गीत...

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  6. अंतिम विदा का बहुत सशक्त चित्रण किया है

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  7. जीवन का यथार्थ है और ... बाद की सारी प्रक्रिया को सुन्दर शब्दों में ऐसा बाँधा है ... भावमयी रचना

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  8. बहुत भावपूर्ण एवं संवेदनशील रचना |

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