बुधवार, 11 मई 2011

अनासक्ति

हमको देश विदेश एक सा !

यह जीवन वह बहती सरिता, एक ठौर जो रुक न सकी है ,
यह कोमल वल्लरी स्नेह की, कभी किसीसे झुक न सकी है ,
सुख-दुःख एक समान हमें है, मिलन-विरह परिवेश एक सा !

हमको देश विदेश एक सा !

यह जीवन वह जलता दीपक, जिसने निशि दिन जलना जाना ,
सभी एक सम ज्योतित करता, भले-बुरे में भेद न माना ,
मंदिर, मस्जिद, महल झोंपड़ी का करता अभिषेक एक सा !

हमको देश विदेश एक सा !

इस जीवन उपवन में आता ग्रीष्म सभी कुछ झुलसाता सा ,
पावन करुणा की रिमझिम से दुखिया मन को सरसाता सा ,
पतझड़ की वीरानी, मधुॠतु की मस्ती का मान एक सा !

हमको देश विदेश एक सा !


किरण

9 टिप्‍पणियां:

  1. इस जीवन उपवन में आता ग्रीष्म सभी कुछ झुलसाता सा ,
    पावन करुणा की रिमझिम से दुखिया मन को सरसाता सा ,
    पतझड़ की वीरानी, मधुॠतु की मस्ती का मान एक सा !

    हमको देश विदेश एक सा !

    सुन्दर भाव...
    सुन्दर शब्द-संयोजन..!!
    कुछ सन्देश देती सी कविता....!!

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  2. माँ का, एक बेहतरीन खूबसूरत गीत पढवाने के लिए आपका आभारी हूँ !

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  3. बहुत ही सटीक प्रस्तुति जो......बहुत सशक्त रचना

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  4. बहुत ह्रदय स्पर्शी रचना |
    आशा

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  5. सहमत हे जी आप की इस सुंदर रचना से, धन्यवाद

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  6. परिपक्वता और अध्यात्म की राह पर क्या देश और क्या परदेश ...
    कौन अपना कौन पराया ...
    सुन्दर !

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  7. यह जीवन वह जलता दीपक, जिसने निशि दिन जलना जाना ,
    सभी एक सम ज्योतित करता, भले-बुरे में भेद न माना ,
    मंदिर, मस्जिद, महल झोंपड़ी का करता अभिषेक एक सा !


    जब सब कुछ एक समान ही लगे तो देश विदेश क्या ..सुन्दर प्रस्तुति

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  8. बहुत ही प्यारा सा गीत है....

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  9. सच ही है जीवन कभी रुकता नहीं है उसे तो चलते ही रहना है.

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