हमको देश विदेश एक सा !
यह जीवन वह बहती सरिता, एक ठौर जो रुक न सकी है ,
यह कोमल वल्लरी स्नेह की, कभी किसीसे झुक न सकी है ,
सुख-दुःख एक समान हमें है, मिलन-विरह परिवेश एक सा !
हमको देश विदेश एक सा !
यह जीवन वह जलता दीपक, जिसने निशि दिन जलना जाना ,
सभी एक सम ज्योतित करता, भले-बुरे में भेद न माना ,
मंदिर, मस्जिद, महल झोंपड़ी का करता अभिषेक एक सा !
हमको देश विदेश एक सा !
इस जीवन उपवन में आता ग्रीष्म सभी कुछ झुलसाता सा ,
पावन करुणा की रिमझिम से दुखिया मन को सरसाता सा ,
पतझड़ की वीरानी, मधुॠतु की मस्ती का मान एक सा !
हमको देश विदेश एक सा !
किरण
इस जीवन उपवन में आता ग्रीष्म सभी कुछ झुलसाता सा ,
जवाब देंहटाएंपावन करुणा की रिमझिम से दुखिया मन को सरसाता सा ,
पतझड़ की वीरानी, मधुॠतु की मस्ती का मान एक सा !
हमको देश विदेश एक सा !
सुन्दर भाव...
सुन्दर शब्द-संयोजन..!!
कुछ सन्देश देती सी कविता....!!
माँ का, एक बेहतरीन खूबसूरत गीत पढवाने के लिए आपका आभारी हूँ !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक प्रस्तुति जो......बहुत सशक्त रचना
जवाब देंहटाएंबहुत ह्रदय स्पर्शी रचना |
जवाब देंहटाएंआशा
सहमत हे जी आप की इस सुंदर रचना से, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंपरिपक्वता और अध्यात्म की राह पर क्या देश और क्या परदेश ...
जवाब देंहटाएंकौन अपना कौन पराया ...
सुन्दर !
यह जीवन वह जलता दीपक, जिसने निशि दिन जलना जाना ,
जवाब देंहटाएंसभी एक सम ज्योतित करता, भले-बुरे में भेद न माना ,
मंदिर, मस्जिद, महल झोंपड़ी का करता अभिषेक एक सा !
जब सब कुछ एक समान ही लगे तो देश विदेश क्या ..सुन्दर प्रस्तुति
बहुत ही प्यारा सा गीत है....
जवाब देंहटाएंसच ही है जीवन कभी रुकता नहीं है उसे तो चलते ही रहना है.
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