१
दीप की सुज्वाल में शलभ राख जा बना ,
उड्गनों की ज्योति से न हट सका कुहर घना ,
सृष्टि क्रम उलझ सुलझ खो रहा है ज़िंदगी ,
नियति खोजती सुपथ बढ़ रही है उन्मना !
२
देख कर अवसान तारक वृन्द का ,
खिलखिला कर हँस पड़े पक्षी मुखर ,
है पतन उत्थान का अंतिम चरण ,
क्या कभी देखा किसीने सोच कर !
३
शलभ दीपक की शिखा पर रीझ कर ,
जब बढ़ा तब काँप कर उसने कहा ,
'ज्वाल हूँ मैं दूर रह पागल शलभ' ,
किन्तु सात्विक प्रेम कुछ सुनता कहाँ !
४
कल्पना ने जब वरण कवि को किया ,
साधना ने शक्ति अरु साहस दिया ,
लगन ने बाँधा उन्हें दृढ़ पाश में ,
शारदा ने प्रेम का आशिष दिया !
किरण
दीप की सुज्वाल में शलभ राख जा बना ,
उड्गनों की ज्योति से न हट सका कुहर घना ,
सृष्टि क्रम उलझ सुलझ खो रहा है ज़िंदगी ,
नियति खोजती सुपथ बढ़ रही है उन्मना !
२
देख कर अवसान तारक वृन्द का ,
खिलखिला कर हँस पड़े पक्षी मुखर ,
है पतन उत्थान का अंतिम चरण ,
क्या कभी देखा किसीने सोच कर !
३
शलभ दीपक की शिखा पर रीझ कर ,
जब बढ़ा तब काँप कर उसने कहा ,
'ज्वाल हूँ मैं दूर रह पागल शलभ' ,
किन्तु सात्विक प्रेम कुछ सुनता कहाँ !
४
कल्पना ने जब वरण कवि को किया ,
साधना ने शक्ति अरु साहस दिया ,
लगन ने बाँधा उन्हें दृढ़ पाश में ,
शारदा ने प्रेम का आशिष दिया !
किरण
कल्पना ने जब वरण कवि को किया ,
जवाब देंहटाएंसाधना ने शक्ति अरु साहस दिया ,
लगन ने बाँधा उन्हें दृढ़ पाश में ,
शारदा ने .....
तभी इतनी सुंदर रचना बनी -
देख कर अवसान तारक वृन्द का ,
जवाब देंहटाएंखिलखिला कर हँस पड़े पक्षी मुखर ,
है पतन उत्थान का अंतिम चरण ,
क्या कभी देखा किसीने सोच कर !
३
शलभ दीपक की शिखा पर रीझ कर ,
जब बढ़ा तब काँप कर उसने कहा ,
'ज्वाल हूँ मैं दूर रह पागल शलभ' ,
किन्तु सात्विक प्रेम कुछ सुनता कहाँ !
पतन ही उत्थान का चरम है सब जानते हैं पर मानते कहां हैं । प्रेम की तो क्या कहें यह तो होता ही है सब कुछ निछावर करने का नाम ।
सुंदर कविता, आप की सुंदर भाषा ने उसमें चार चांद लगा दिये हैं ।
शलभ दीपक की शिखा पर रीझ कर ,
जवाब देंहटाएंजब बढ़ा तब काँप कर उसने कहा ,
'ज्वाल हूँ मैं दूर रह पागल शलभ' ,
किन्तु सात्विक प्रेम कुछ सुनता कहाँ !
mann ko bandhti rachna
वाह …………।बेहद उत्तम कृति।
जवाब देंहटाएंसारे मुक्तक बहुत सुन्दर ...मन भाव विभोर हो जाता है माताजी की रचनाएँ पढ़ कर
जवाब देंहटाएंआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (2.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
"कल्पना ने जब -----शारदा ने प्रेम का आशीष दिया "
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव पूर्ण क्षणिकाएं हैं |
आशा
sahbd sanyojan ati sundar.....bahut sundar likha hai aapne
जवाब देंहटाएंसभी मुक्तक बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी......
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना है जी, एकदम से दिल को छूती है...तरल प्रवाह है...भावुक करती है
जवाब देंहटाएंक्या दृष्यांकन किया है..सभी मुक्तक बहुत सुन्दर ..उत्तम
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