झिलमिल करती झीनी किरणों का मुख पर अवगुंठन डाले ,
अरुण वदन, लज्जित अधरों में भर स्मिति के मधुमय प्याले !
प्रियागमन की किये प्रतीक्षा उत्सुक नयन बिछाये पथ पर ,
आशा अरु अरमान भरे अंतर में सिहरन का कम्पन भर !
पश्चिम दिशि में खड़ी हुई प्राची मुख नव वधु संध्या बाला ,
जब बिखराये सघन केश रजनी बुनती पट झीना काला !
नील गगन की सुघर सेज को चुन-चुन तारक कुसुम सजाई ,
नभ गंगा की धवल ज्योत्सना की अनुपम चादर फैलाई !
निकल रहे थे अंतरतम से गुनगुन गीत मिलन के पल छन ,
स्वर, लय, तान मिलाने उसमें झींगुर वाद्य बजाते झन-झन !
मस्त पवन अठखेली करके रह-रह उसका पट उलटाता ,
बादल आँख मिचौली करते, सारा जग था बलि-बलि जाता !
पहर तीसरा बीत चला प्रिय चंद्र न आया, म्लान थकी वह ,
उस निष्ठुर से हुई उपेक्षित यह अवहेला सह न सकी वह !
फूट-फूट रो उठी हाय वह आँसू बरस मही पर छाये ,
नव दूर्वा, मुकुलित कुसुमों ने अधर खोल जग को दिखलाये !
नयन थके रोते-रोते, लालिमा सुघर आनन पर छाई ,
नव प्रभात का देख आगमन व्यथित हुई, निराश, अकुलाई !
भ्रात सूर्य जब डाल रश्मि पट रथ लेकर लेने को आया ,
देख बहन की अवहेला नयनों में भर क्रोधानल लाया !
चला खोजने भगिनीपति वह शांत हृदय उसका करने को ,
दुखिया के सूने जीवन में फिर से नेह नीर भरने को !
नित्य क्रोध से भरा पूर्व से चलता खोज लगाने को वह ,
हो हताश सोता पश्चिम में जाकर उसे न पाने पर वह !
आदिकाल से चली आ रही खोज न पूरी कर पाया वह ,
चंद्र सूर्य मिल सके, न फिर संध्या पर नव निखार ही छाया !
किरण
बहुत अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंआशा
आशा
आनन्द आ गया....वाह!! सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंनववधू संध्या बाला ...प्रकृति का मानवीकरण बहुत ही खूबसूरत बन पड़ा है !
जवाब देंहटाएंहमेशा की तर उत्कृ्ष्ट रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ!
बहुत ही सुन्दर शब्दों के साथ अनुपम प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंआनंद आ गया आशा और निराशा का संगम
जवाब देंहटाएंबधाइयाँ
नित्य क्रोध से भरा पूर्व से चलता खोज लगाने को वह ,
जवाब देंहटाएंहो हताश सोता पश्चिम में जाकर उसे न पाने पर वह !
आदिकाल से चली आ रही खोज न पूरी कर पाया वह ,
चंद्र सूर्य मिल सके, न फिर संध्या पर नव निखार ही छाया !
सूर्य के उदय और अस्त को एकदम नए नज़रिए से बयाँ किया गया है...बहुत सुन्दर
फूट-फूट रो उठी हाय वह आँसू बरस मही पर छाये ,
जवाब देंहटाएंनव दूर्वा, मुकुलित कुसुमों ने अधर खोल जग को दिखलाये
सुंदर कविता,
बहुत सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता, धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंआदिकाल से चली आ रही खोज न पूरी कर पाया वह ,
जवाब देंहटाएंचंद्र सूर्य मिल सके, न फिर संध्या पर नव निखार ही छाया !
वाह वाह ...ऐसी सरस रचनाएँ कहाँ मिलती हैं पढने को ....साधना जी आपका आभार ऐसी सुन्दर रचनाएँ पढवाने का
पश्चिम दिशि में खड़ी हुई प्राची मुख नव वधु संध्या बाला ,
जवाब देंहटाएंजब बिखराये सघन केश रजनी बुनती पट झीना काला !
दिवा-रात्रि का इतना सुन्दर वर्णन....
प्रसंशा के लिए शब्द ही नहीं है...
पूरी कविता ही अत्युत्तम है.....
बहुत सुंदर कविता, धन्यवाद|
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