गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

दर्पण

आज से माँ की दूसरी पुस्तक 'सतरंगिनी' की रचनाएं इस ब्लॉग पर अपने पाठकों के लिये उपलब्ध करा रही हूँ ! इन रचनाओं का कथ्य, इनकी अभिव्यक्ति और इनका कलेवर आपको पहले की रचनाओं से भिन्न मिलेगा और आशा करती हूँ ये रचनाएं भी आपको अवश्य पसंद आयेंगी !


आज अभावों की ज्वाला में
झुलसा हर इंसान रो दिया ,
अन्वेषण से थक नयनों ने
भू में करुणा पुन्ज बो दिया ,
कुछ ऐसे मौसम में साथी
यह खेती लहलहा उठी है ,
जग ने निर्ममता अपना ली
मानवता ने प्यार खो दिया !


किरण

14 टिप्‍पणियां:

  1. जग ने निर्ममता अपना ली
    मानवता ने प्यार खो दिया !
    कम शब्दों में कटु सत्य उजागर करती एक सार्थक रचना...

    जवाब देंहटाएं
  2. मम्मी की नई किताब प्रारम्भ करने के लिए बहुत बहुत बधाई |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  3. गागर में सागर..बहुत सार्थक और सुन्दर..

    जवाब देंहटाएं
  4. जग ने निर्ममता अपना ली
    मानवता ने प्यार खो दिया !

    कितनी बड़ी सच्चाई कह दी है इन पंक्तियों में ...

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर ...अर्थपूर्ण प्रभावी अभिव्यक्ति....

    जवाब देंहटाएं
  6. मानवता ने प्यार खो दिया ...
    कुछ कवितायेँ सच का आईना ही होती है !

    जवाब देंहटाएं
  7. जग ने निर्ममता अपना ली
    मानवता ने प्यार खो दिया !

    gahan vedna....
    bahut sunder abhivyakti .....

    जवाब देंहटाएं
  8. वाह अत्यंत भावपूर्ण..
    कटाछ मानवता पर, सत्यता की अभिव्यक्ति..

    जवाब देंहटाएं
  9. जग ने निर्ममता अपना ली
    मानवता ने प्यार खो दिया !
    अत्यंत भावपूर्ण..
    कटाछ मानवता पर, सत्यता की अभिव्यक्ति


    कितनी बड़ी सच्चाई कह दी है इन पंक्तियों में

    जवाब देंहटाएं