बुधवार, 1 दिसंबर 2010

ॠतु वर्णन - शरद

दिसंबर का महीना आ गया है ! सर्दी ने अपने रंग दिखाना आरम्भ कर दिया है !
माँ की डायरी में कुछ बहुत ही खूबसूरत कविताएं हैं ! प्रत्येक ॠतु में धरा का प्रेयसी
के रूप में मानवीकरण कर उसके साज श्रृंगार और भाव प्रवणता को उन्होंने बहुत सुन्दर
एवं हृदयग्राही काव्यरूप में सँजोया है ! यह ॠतु वर्णन चार भागों में शब्दबद्ध है -
शरद, वसंत, ग्रीष्म और वर्षा ! पाठकों से अनुरोध है कि इन कविताओं का समग्र रूप
से रसास्वादन करने के लिये इन सभी रचनाओं को वे अवश्य पढ़ें तभी वे इसका भरपूर
आनंद उठा सकेंगे ! इसी क्रम में प्रस्तुत है आज पहली रचना - शरद ॠतु !

शरद ॠतु

सुनो वह सुनाऊँ कहानी निराली,
सुनी, ना किसीने अभी तक सुनाई !

धरणि नायिका आगमन जान प्रिय का
शरद् चन्द्र का थाल सुन्दर सजाये,
अँधेरी अमावस में तारक अवलि के
सुघर दीप की आरती को जलाये !

भरा स्नेह जीवन, बना दीप सुन्दर
बनी वर्तिका थी प्रतीक्षा मनोहर,
जले दीप आशा के दीपावली में
खिला रूप अनुपम प्रकाशित तमोहर !

प्रणय कल्पना में सिहरती, ठिठकती
थिरकती चली अटपटी चाल से वह,
कभी काँप उठती, कभी चौंक पड़ती
कभी स्वेद को पोंछती भाल से वह !

नये किसलयों से सजाया स्व तन को
पुराने पड़े पीत पल्लव हटाये,
सजाये सघन केश, वेणी बनाई
भरी माँग शबनम के मोती सजाये !

हटा कालिमा की फटी जीर्ण साड़ी
धवल चंद्रिका में छिपा गात सुन्दर,
अभी द्वार तक वह पहुँच भी न पाई
सुनी चाप पद की उधर मंद मंथर !

सुना द्वार पर कुछ बँधा सा इशारा
खिली वह, किसी को दया न दिखाई,
सुनो वह सुनाऊँ कहानी निराली
सुनी, ना किसीने अभी तक सुनाई !

किरण

16 टिप्‍पणियां:

  1. यह कविता उनकी बहुत सराही गई कविताओं में से एक है |जब स्टेज पर इसे पढ़ा तब बहुत पसन्द की गई थी| आज भी वह पल मुझे याद है |
    आशा

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  2. गीत में शरद ऋतु का सुन्दर चित्रण किया गया है!

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  3. सुंदर शब्दों में सजा कर शरद ऋतू का वर्णन बहुत मनोहारी लगा.

    आभार.

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  4. सुन्दर श्रद ऋातु वर्नन। आपकी माता जी बहुत अच्छा लिखती हैं। उनकी लेखनी को सलाम, उन्हें पढवाने के लिये धन्यवाद।

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  5. सुनो वह सुनाऊँ कहानी निराली,
    सुनी, ना किसीने अभी तक सुनाई !

    धरणि नायिका आगमन जान प्रिय का
    शरद् चन्द्र का थाल सुन्दर सजाये,
    अँधेरी अमावस में तारक अवलि के
    सुघर दीप की आरती को जलाये !

    भरा स्नेह जीवन, बना दीप सुन्दर
    बनी वर्तिका थी प्रतीक्षा मनोहर,
    जले दीप आशा के दीपावली में
    खिला रूप अनुपम प्रकाशित तमोहर !

    सुन्दर प्रस्तुति...

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  6. बहुत सुन्दर शब्दों से रचा यह शरद ऋतु का वर्णन ..प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर लगा ...

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  7. ्प्राक्रितिक छटाओन से भरपूर इस कविता को पढ़कर टैगोर जि की कवितायें याद आ गयी…………।बहुत सुन्दर

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  8. आपकी सुन्दर रचना में, लग रहा है प्रकृति ने स्वयं अपनी पूरी मनोरम छटा बिखेर दी है !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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