रविवार, 26 दिसंबर 2010

विफल आशा

आई थी मैं बड़े प्रात ही
लेकर पूजा की थाली,
फैला रहे क्षितिज पर दिनकर
अपनी किरणों की जाली !

उषा अरुण सेंदुर से अपने
मस्तक का श्रृंगार किये,
चली आ रही धीरे-धीरे
प्रिय पूजा का थाल लिये !

मैं भी चली पूजने अपने
प्रियतम को मंदिर की ओर,
आशा अरु उत्साह भरी थी
नाच रहा था मम मन मोर !

पहुँची प्रियतम के द्वारे पर
किन्तु हाय यह क्या देखा,
मंदिर के पट बंद हाय री
मेरी किस्मत की लेखा !

उषा मुस्कुराती थी लख कर
मेरी असफलता भारी,
लज्जा से मैं गढ़ी हुई थी
कुचल गयी आशा सारी !

किरण

19 टिप्‍पणियां:

  1. प्रणाम साधना जी....बहुत ही सुंदर कविता...क्या शब्द चयन है,क्या भाव है....बहुत ही सुंदर अतिसुंदर,,,,आपकी लेखनी में जादू है।

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  2. उषा मुस्कुराती थी लख कर
    मेरी असफलता भारी,
    लज्जा से मैं गढ़ी हुई थी
    कुचल गयी आशा सारी !
    वाह जी बहुत खुब बहुत सुंदर.
    धन्यवाद

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  3. शब्द चयन और प्रस्तुतीकरण ने कविता को अर्थपूर्ण बना दिया है ...शुक्रिया

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  4. बहुत सुन्दर रचना ....लेकिन माताजी ने न जाने कौन से निराशाजनक पलों में लिखी होगी ...नहीं तो हमेशा सकारात्मक रचनाएँ ही पढने को मिली हैं ...

    कभी कभी आशा निराश भी तो करती ही है ..:)

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  5. आपकी मता जी की रचनाएं बेमिसाल है!
    यह रचना तो बहुत ही सुन्दर है!

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  6. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना कल मंगलवार 28 -12 -2010
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..


    http://charchamanch.uchcharan.com/

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  7. भावपूर्ण प्रस्तुति |बहुत सुन्दर कविता |
    आशा

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  8. उषा मुस्काती थी लाख कर ...मेरी असफलता भारी ...
    निराशा में भी अच्छी कविता ..
    आभार !

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  9. सुंदर कल्पना -
    सुंदर रचना -
    शुभकामनाएं -

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  10. बेहतरीन अभिव्यक्ति
    आभार।

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  11. बेहतरीन अभिव्यक्ति.....सुंदर रचना -

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  12. भावपूर्ण खू्बसू्रत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  13. उषा मुस्कुराती थी लख कर
    मेरी असफलता भारी,
    लज्जा से मैं गढ़ी हुई थी
    कुचल गयी आशा सारी !

    aapki iss asafalta me bhi pyar chhipa hai...

    nav-varsh ki subh kamnayen!!
    regards

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