ॠतु वर्णन के इस क्रम में आज माँ की दूसरी कविता 'वसन्त' प्रस्तुत है !
वसन्त
निरख प्राण प्रियतम हुई आत्म विस्मृत
पुलक कम्प उर में नया रंग लाया,
चुने फूल सरसों के केसर मिलाई
उबटना नया अंग पर तब लगाया !
निशा कालिमा से लिया सद्य काजल
नयन में लगा केश फिर से बँधाए,
प्रकृति चेरी से ले मदिर गंध उसने
मली अंग से, वस्त्र भूषण सजाये !
चुनी रात रानी की कलियाँ सुहानी
जड़ा मोतियों बीच बैना लगाया,
करण फूल सुन्दर बने दाउदी के
सुघर केतकी का गुलूबंद भाया !
जुही की बना पहुँचियाँ पहन डालीं
रची हाथ में लाल मेंहदी सुहानी,
लगा पैर में किन्शुकों की महावर
चमेली की पायल बनी मन लुभानी !
हरी ओढ़ चूनर, सजा साज नूतन
प्रणय केलि में खो गयी सुध गँवाई,
उधर कुहुक कर कह रही जो कोयलिया
ना सुन ही सकी, ना इसे जान पाई !
अचानक हुआ ग्रीष्म का आगमन जो
वहाँ पर किसी को दिया ना दिखाई,
सुनो वह सुनाऊँ कहानी निराली
सुनी, ना किसी ने अभी तक सुनाई !
किरण
सुंदर शब्दों में सजा कर वसन्त ऋतू का वर्णन किया गया है!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएं"माफ़ी"--बहुत दिनों से आपकी पोस्ट न पढ पाने के लिए ...
भावाभिव्यक्ति अच्छी है.
जवाब देंहटाएंजुही की बना पहुँचियाँ पहन डालीं
जवाब देंहटाएंरची हाथ में लाल मेंहदी सुहानी,
लगा पैर में किन्शुकों की महावर
चमेली की पायल बनी मन लुभानी !
किन्शुकों की महावर ....बहुत ही ख़ूबसूरत शब्दों का चयन जो अब विस्मृत होते जा रहें हैं...
मन को मोह लेने वाली कविता
कविता के भाव और शब्दचयन दूसरे ही जगत में ले जाते हैं,और कुछ समय के लिए भूल जाते हैं अपने आसपास की दुनिया..बहुत सुन्दर..आभार
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंविचार- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद - भारतीयता के प्रतीक
सुन्दर कविता ने बसंत खिला दिया ....बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंबसंत की रचना पढ़ कर बसंत ऋतू जैसी महक से भर गया मन. बहुत बहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सजीव रहा वसन्त का चित्रण!
जवाब देंहटाएंबहुत सजीव कविता |बहुत अच्छी रचना |अदभुद शब्द चयन |
जवाब देंहटाएंआशा