ॠतु वर्णन की इस श्रंखला में आज पस्तुत है अंतिम कड़ी 'वर्षा' !
वर्षा
हुई कष्ट से बावली सी अवनि तब
उमड़ कर हृदय स्त्रोत बन भाप आया,
लगाने को मरहम दुखिनी के व्रणों पर
सुघर वैद्य का रूप भर मेघ आया !
बही आह की वायु कहती कहानी
झड़ी आँसुओं की लगी नैन से जब,
सम्हाले न सम्हला रुदन वेग उससे
भरे ताल, नदियाँ उमड़ती चली तब !
चतुर मोर, दादुर बँधा धीर उसको
सुनाने लगे प्रेमियों की कहानी ,
कि किससे पपीहा दुखी हो रहा है,
कि चातक न पीता है क्यों आज पानी !
कि मछली बिना नीर मरती तड़प क्यों,
कि चुगता चकोरा सदा क्यों अंगारे ,
अमर प्रेम उनका, अटल है लगन यह
कि इस प्रेम पर कष्ट तुमने सहारे !
हुआ धैर्य उसको, नयन पोंछ डाले
मिटा ताप तन का, कि सुध-बुध सम्हाली,
नयन में रहा क्षोभ, भूली सभी कुछ
छटा प्रेम की मुख पे छाई निराली !
विकलता धरा की न भाई किसीको
हरी चुनरी ओढ़ तब मुस्कुराई ,
सुनो वह सुनाऊँ कहानी निराली
सुनी, ना अभी तक किसीने सुनाई !
किरण
पूजा या नमाज़ कायम करो .....
जवाब देंहटाएंजिसकी पूजा
या नमाज़ सच्ची
तो उसकी
जिंदगी अच्छी ,
जिसकी जिंदगी अच्छी
उसकी म़ोत अच्छी
जिसकी म़ोत अच्छी
उसकी आखेरत अच्छी
जिसकी आखेरत अच्छी
उसकी जन्नत पक्की
तो जनाब इसके लियें
करो पूजा या नमाज़ सच्ची ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना ...ऋतुओं पर लिखी सारी रचनाएँ बहुत अच्छी लगीं ...पढवाने का आभार .
जवाब देंहटाएंऋतुओं के वर्णन पर बहुत अच्छी उच्चकोटि की रचनायें। साधना जी आपकी हिन्दी बहुत समृ्द्ध है। बधाई।
जवाब देंहटाएंhar ritu ko aapne jivant kiya hai
जवाब देंहटाएंबहुत ह्रदय स्पर्शी रचना | प्रभावशाली अभिव्यक्ति |
जवाब देंहटाएंआशा
लगाने को मरहम दुखिनी के व्रणों पर
जवाब देंहटाएंसुघर वैद्य का रूप भर मेघ आया !
क्या अवलोकन है....बरबस ही वाह निकल पड़ता है मुख से...बहुत ही प्रभावशाली रचना..एक सहजता-सरता लिए हुए.
सुंदर शब्दों में सजा कर वर्षा ऋतू का वर्णन किया गया है!
जवाब देंहटाएंबहुत पसन्द आया
जवाब देंहटाएंआप की कविताये तो संग्रह करने, ओर पुस्तको मे छपने योग्या हे जी,बहुत सुंदर कविताये, प्रसंशा भी कम लगती हे इन के सामने, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंवर्षा ॠतु का बहुत ही सुन्दर चित्रण्।
जवाब देंहटाएंवाह! माटी की सुगंध से परिचय कराती पावस की मनोहारी छटा बिखेरती सुंदर रचना| बधाई|
जवाब देंहटाएंविकलता धरा की न भाई किसीको
जवाब देंहटाएंहरी चुनरी ओढ़ तब मुस्कुराई ,
सुनो वह सुनाऊँ कहानी निराली
सुनी, ना अभी तक किसीने सुनाई !
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बहुत मनोहारी रचना!
सुन्दर वर्णन !
जवाब देंहटाएंबहुत ही खुबसूरत रचना...मेरा ब्लागः"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ मेरी कविताएँ "हिन्दी साहित्य मंच" पर भी हर सोमवार, शुक्रवार प्रकाशित.....आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे......धन्यवाद
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