मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

नया संसार

एक नया संसार बना कर
जग से दूर क्षितिज तट में,
वहाँ छिपाऊँगी अपने को
अवनी के धूमिल पट में !

दुखियों का साम्राज्य नया
निष्कंटक मैं बनवाऊँगी,
दु:ख राज्य की रानी बन मैं
सुन्दर राज्य चलाऊँगी !

पीड़ा मेरी मंत्री होगी
आहों का मैं बना विधान,
सदा करूँगी खण्डित उससे
सुख का औ आशा का मान !

केवल एक निराशा का
होगा मेरे हाथों में दण्ड,
अरमानों को तोड़-फोड़ कर
मैं कर डालूँगी दो खण्ड !

एक फेंक दूँगी जगती पर
उसका न्याय बताने को,
एक विधाता के चरणों में
अपनी विनय सुनाने को !

और कहूँगी जगत पिता से
"प्रभु दिखलाना तनिक दया,
अमर रहे दुखियों का जीवन
अमर रहे साम्राज्य नया !"

किरण

13 टिप्‍पणियां:

  1. इस सुन्दर रचना की चर्चा
    बुधवार के चर्चामंच पर भी लगाई है!

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  2. न जाने कितने वर्ष पहले इस नयी सोच ने जन्म लिया होगा .? दुखियों का साम्राज्य की कल्पना ..पीड़ा मंत्री बने और आहों का क़ानून ...गज़ब की सोच है ..बहुत सुन्दर रचना ..

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  3. एक नयी विचार |सुख का संसार तो सभी बसाते है पर दुःख का संसार बसाने वाले बिरले ही होते हैं |
    आशा

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  4. साधना वैद्य जी!
    चर्चा मंच में आपकी माता जी रचना पर उनका चित्र लगा दिया गया है!

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  5. एक फेंक दूँगी जगती पर
    उसका न्याय बताने को,
    एक विधाता के चरणों में
    अपनी विनय सुनाने को

    aah apaar vaidna ki syaahi me sani ye rachna...bahut kuchh us waqt ke kaviyitri ke haalaato ko sochne par mazboor karti hai.

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  6. अभूतपूर्व अनोखा दृष्टिकोण !!!

    आज तक ऐसा नहीं पढ़ा कहीं...

    दुःख के लिए आग्रह का सामर्थ्य शायद ही कोई कोई कर पाता है.

    अद्वितीय रचना...वाह !!!

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  7. और कहूँगी जगत पिता से
    "प्रभु दिखलाना तनिक दया,
    अमर रहे दुखियों का जीवन
    अमर रहे साम्राज्य नया !"

    सुन्दर रचना...

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  8. एक फेंक दूँगी जगती पर
    उसका न्याय बताने को,
    एक विधाता के चरणों में
    अपनी विनय सुनाने को !

    बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..

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  9. "एक विधाता के चरणों में
    अपनी विनय सुनाने को "

    बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ , शुभकामनाएं !!

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  10. भावों की प्रस्तुति अच्छी लगी। सटीक पोस्ट। मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है।

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