आज प्रस्तुत है ऋतु वर्णन का तीसरा भाग 'ग्रीष्म' जब धरिणी
नायिका को अपने प्रियतम के कोप का ताप सहने के लिये
विवश होना पड़ा !
ग्रीष्म
रहा वह ठगा सा निरख कर स्वगृहणी
पगी अन्य के संग रंगराग में थी ,
चढ़ाये नये द्राक्ष की मस्त हाला
नशे में भरी व्यस्त वह फाग में थी !
धधक कर उठी क्रोध की ज्वाल उर में
जली होलिका सी, हुआ रंग काला ,
हुआ रौद्र सा वेश उसका भयंकर
मही का तभी नोच सब साज डाला !
हरी चूनरी घास की चीर डाली ,
गिरे सूख कर पुष्प के आभरण सब,
मिटा रूप अनुपम, बिलखती रही वह,
गयी सूख बिलकुल छुटा प्रिय रमण जब !
ज्वलित सूर्य किरणों का कोड़ा उठा कर
अनेकों धरा पर लगाये तड़प कर ,
फटे अंग उसके, पड़ी तब दरारें
धरा रह गयी तिलमिला कर, सिसक कर !
गये सूख नद, ताल, छाई उदासी
दशा दीन उसकी किसी को न भाई ,
सुनो वह सुनाऊँ कहानी निराली
सुनी, ना अभी तक किसीने सुनाई !
किरण
शब्दों में पूरा वर्णन समा दिया है ...बहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं"ज्वलित सूर्य किरणों का कोडा ---------धारा रह गयी तिलमिला कर "
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर शब्द चयन |सुन्दर भाव लिए रचना |
आशा
सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंओह..ग्रीष्म ऋतु की पूरी तस्वीर खींच गयी आँखों के समक्ष....बहुत ही कुशलता से शब्दों में गुंथी गयी है...
जवाब देंहटाएंज्वलित सूर्य किरणों का कोड़ा उठा कर
जवाब देंहटाएंअनेकों धरा पर लगाये तड़प कर ,
फटे अंग उसके, पड़ी तब दरारें
धरा रह गयी तिलमिला कर, सिसक कर !
किरणों का कोडा--- वाह बहुत सुन्दर प्रयोग।
बहुत सुन्दर रचना। क्या बात है साधना जी आपने मेरे ब्लाग पर आना ही छोड दिया। इन्तजार रहता है आपका।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंविचार-परम्परा
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रचना में ग्रीष्म ऋतु का सजीव वर्णन है!
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार!
ज्वलित सूर्य किरणों का कोड़ा उठा कर
जवाब देंहटाएंअनेकों धरा पर लगाये तड़प कर ,
फटे अंग उसके, पड़ी तब दरारें
धरा रह गयी तिलमिला कर, सिसक कर ...
इस सर्दी में भी ग्रीष्म का एहसास कारा रही है आपकी रचना ... बहुत सुन्दर शब्दों में संजोया है ...
अनूठी रचना ! शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंइतना अच्छा लिखा है की मानो सब चलचित्र की तरह आँखों के आगे घूम गया. बहुत ही सुंदर और अनूठा वर्णन.नमन इस लेखनी को.
जवाब देंहटाएंआदरणीय
जवाब देंहटाएंSadhana Vaid ji
नमस्कार
ज्वलित सूर्य किरणों का कोड़ा उठा कर
अनेकों धरा पर लगाये तड़प कर ,
फटे अंग उसके, पड़ी तब दरारें
धरा रह गयी तिलमिला कर, सिसक कर !
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एक अनूठी रचना के माध्यम से आपने वास्तविकता से रुबरु करवा दिया ...शुक्रिया
सुंदर शब्दों में सजा कर ग्रीष्म ऋतू का वर्णन किया गया है!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रही यह शृंखला।
जवाब देंहटाएंसाधना जी, आदरणीया किरण जी की उत्तम प्रस्तुतियों ने मन मोह लिया| छंदबद्ध काव्य का अनुपम उदाहरण है ये| साधु!
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